इस दुनिया में सदैव ही दो तरह की विचारधारा के लोग जीते हैं

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


इस दुनिया में सदैव ही दो तरह की विचारधारा के लोग जीते हैं। एक इस दुनिया को निःसार समझकर इससे दूर और दूर ही भागते हैं। दूसरी विचारधारा वाले लोग इस दुनिया से मोहवश ऐसे चिपटे रहते हैं कि कहीं यह छूट ना जाए। कुछ इसे बुरा कहते हैं तो कुछ इसे बूरा मीठा कहते हैं।
भगवान् वुद्ध कहते हैं जीवन एक वीणा की तरह है। वीणा के तारों को ढीला छोड़ेगो तो झंकार ना निकलेगी और ज्यादा खींच दोगे तो वो टूट जायेंगे। मध्यम मार्ग श्रेष्ठ है, ना ज्यादा ढीला और ना ज्यादा खिचाव।
अपनी जीवन रूपी वीणा से सुख - आनंद की मधुर झंकार निकले इसलिए अपने इन्द्रिय रुपी तारों को ना इतना ढीला रखो कि वो निरंकुश और अर्थहीन हो जाएँ और ना इतना ज्यादा कसो कि वो टूटकर आनंद का अर्थ ही खो बैठें। जिसे मध्यम मार्ग में जीना आ गया वो सच में आनंद को उपलब्ध हो जाता है 


अंत –मन, बुद्धि और मिथ्या अहंकार भौतिक प्रकृति मे ही संभव हैं चाहे उसे जड़ कहे या शुक्ष्म। ये सब मूलतः जड़ ही हैं-  मात्र आत्मा ही चेतन हैं और चेतन आत्मा  का प्रतिबिंब जड़ मन में विकार ग्रस्त हो जाता हैं वास्तविक नही रहता।
निज स्वरूप में मात्र जीवात्मा ही स्थापित होता हैं।


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