निज कर क्रिया रहीम कहि सिधि भावी के हाथ पाॅसे अपने हाथ में दाॅव न अपने हाथ
फ्यूचर लाइन टाईम्स निज कर क्रिया रहीम कहि सिधि भावी के हाथ पाॅसे अपने हाथ में दाॅव न अपने हाथ । कर्म करना हीं मात्र अपने हाथ में है।कर्म की सिद्धि भाग्य के हाथ में है।जुए के खेल में केवल पाॅसा फेंकना अपने वश में है-उसका दाव-परिणाम अपने नियंत्रण में नही होता है।यह सब प्रभु की इच्छा के अनुसार होता है। आबत काज रहीम कहि गाढे बंधु सनेह जीरन होत न पेड़ ज्यों थामें बरै बरेह । अर्थ : दुख के समय अपने प्रिय भाई बंधु स्नेही हीं काम आते हैं।बरगद के बृक्ष को कोई गिराने लगता है तो उसके सजातीय बृक्ष हीं उसे गिरने से रोक लेते हैं और वह पुनः बढने फलने लगता है। गगन चढै फरक्यो फिरै रहिमन बहरी बाज फेरि आई बंधन परै अधम पेट के काज । अर्थ : बाज शिकार का पीछा करने के लिये उॅचे आकाश में उड़ता फिरता है।मालिक के बुलाने पर भी नही आता मानो बहरा हो गया हो।लेकिन भूख लगने पर पेट के खातिर वह स्वयं मालिक के कैद में आ जाता है।पेट की आग सबों को आकाश से धरती पर पटक देती है। थोथे बादर क्वार के ज्योंरहीम घहरात धनी पुरूश निर्धन भये करे पाछिली बात । अर्थ : क्वार महीने का बादल जलहीन होता है परन्तु ब्यर्थ हीं गरजता रहता