इतिहास की पुस्तकों में परिवर्तन कब? डाक्टर विवेक आर्य

फ्यूचर लाइन टाईम्स ।
डॉ विवेक आर्य का मोदी के नाम खुला पत्र
मैं इस खुले पत्र के माध्यम से आपका ध्यान इतिहास की पुस्तकों के माध्यम से फैलाये जा रहे बौद्धिक प्रदुषण की ओर दिलाना चाहता हूँ। मैं मेरे पुत्र की सोशल साइंस सामाजिक विज्ञान की छठी कक्षा की पुस्तक को देख रहा था। विषय संस्कृत भाषा से सम्बंधित था। देखकर आश्चर्य हुआ कि अबोध बच्चों के मस्तिष्क को किस प्रकार से भ्रमित किया जा रहा है। हम सभी जानते हैं कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। सभी भाषाओं की जननी है। इस स्थापित तथ्य को छुपा कर संस्कृत को इंडो-यूरोपियन के समूह की भाषा के साथ नत्थी कर दिया गया और दक्षिण भारत की भाषाओं का अलग समूह बना दिया। वामपन्थी यहाँ भी नहीं रुके, झारखण्ड और मध्यभारत की जनजातियों को एक अन्य कल्पित 'मुण्ड' से सम्बंधित कर दिया गया। यह स्पष्ट है कि इस विभाजन का मुख्य उद्देश्य देशवासियों को उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत, हिंदी बनाम तमिल, ब्राह्मण बनाम दलित, आर्य बनाम दस्यु आदि के रूप में विभाजित करना है। 
देखिये पुस्तक में क्या लिखा है-
Sanskrit and other languages: Sanskrit is part of a family of languages knows as Indo-European. Some Indian languages such as Assamese, Gujarati, Hindi, Kashmiri and Sindhi; Asian languages such as Persian and many European languages such as English, French, German, Greek, Italian and Spanish belong to this family. They are called a family because they originally had words in common. Take the words ‘matr’ (Sanskrit), ‘ma’ (Hindi) and ‘mother’ (English). Do you notice any similarities? Other languages used in the subcontinent belong to different families. For instance, those used in the north-east belong to the Tibeto-Burmese family; Tamil, Telugu, Kannada and Malayalam belong to the Dravidian family; and the languages spoken in Jharkhand and parts of central India belong to the Austro-Asiatic family.
Textbook in History for Class 6th, Social Science, NCERT, Jan, 2019, p.36
इस षड़यंत्र का शिकार छोटे-2 बच्चों को बनाया जा रहा है। बड़े होने पर यही बच्चे देश के प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर उससे घृणा करने लगेंगे।
विडंबना देखिये कि NCERT की इतिहास की पुस्तक के इस संस्करण का प्रकाशन 2006 में UPA प्रथम के समय में हुआ था। आज भी उसी को बिना परिवर्तन के बार बार प्रकाशित किया जा रहा है। आप सत्ता में 2014 से हैं। 6 साल में आप इस बौद्धिक आतंकवाद को जड़ से उखाड़ सकते थे। पर यह देरी क्यों? अभी भी समय है। देश की युवा पीढ़ी को बर्बाद होने से बचाये। इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देकर आने वाली संतति की रक्षा कीजिये। यह मैंने केवल एक छोटा सा उदहारण दिया है। छोटी कक्षा से लेकर B.A., M.A., Ph.D. तक यही षड़यंत्र आपको अनेक प्रकार से देखने को मिलता है। जैसे आर्य विदेशी आक्रमणकारी थे, प्राचीन भारत में अश्वमेध यज्ञ में घोड़े की बलि दी जाती थी, वेद गडरियों के गीत थे, हिन्दू धर्म में अर्थ नारी का सती होना और देवदासी बनना है, हिन्दू धर्म में छुआछूत आरम्भ से है, यज्ञों में गौहत्या होती थी, श्री राम और श्री कृष्ण मिथक थे, प्राचीन आर्य जंगली थे आदि। इस षड़यंत्र को निष्फल बनाने के लिए हम आपसे निवेदन करते हैं। आशा है आप इसे आपातकालीन समस्या के रूप में स्वीकार करेंगे। हम 'आर्य' इस विषय में अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं।
सलंग्न चित्र
1. सामाजिक विज्ञान पुस्तक का मुख-पृष्ठ
2. इसके 2006 से पुन: प्रकाशन का प्रमाण

Narendra Modi PMO India
Dr.Ramesh Pokhriyal Nishank

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