बौद्धिक, व्यवहार से परीक्षा : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


लालबत्ती होने से पहले चौराहा पार करने की आपाधापी में अचानक बाईं ओर से दायीं ओर जाने वाले वाहन चालक को हम कितने मधुर शब्दों से नवाजते हैं। ऐसा अक्सर होता है। सड़क पर स्वयं से आगे चल रहे वाहन को अचानक रोक देने वाले अथवा अत्यंत मंद गति से चलने वाले वाहन के चालक के प्रति हमारी जिह्वा कितने सुंदर शब्दों का निर्माण करती है। यह क्षणिक आवेश हमारे चरित्र की दुर्बलता का परिचायक है। सहनशीलता की निर्बलता हमें मनुष्यता से नीचे ले जाती है। हमारी शिक्षा, हमारे संस्कार, हमारी कुल मर्यादा और इन सबसे ऊपर हमारी नैतिकता एक क्षण में धराशाई हो जाते हैं। मैं भी ऐसा कर बैठता हूं। तत्काल मुझे मेरी निम्नता का अनुभव होता है। मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता ने कष्ट साध्य जीवन में प्रयासों से जो शिक्षा और संस्कार मुझे दिये, मैं उनका वास्तविक पात्र नहीं था। यदि मैंने उनकी साधना को दस बीस प्रतिशत भी महत्व दिया होता तो मेरी जिह्वा किसी अनजान के अनायास अपराध के लिए कटु शब्दों का वरण न करती। पश्चाताप का लाभ तब है जब हम पुनः वह गलती न करें। परंतु अगले चौराहे पर हमारा व्यवहार पहले जैसा हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि संस्कारों के प्रभाव में हम गलती को पहचान तो लेते हैं परंतु उसे मन-मस्तिष्क से निकाल फेंकने का साहस नहीं कर पाते। मैं इसे चरित्र की दुर्बलता कहता हूं। चरित्र की दुर्बलता अन्य दुर्बलताओं से अधिक घातक है। यह हमें किसी भी भ्रष्ट आचरण से नहीं रोक पाती। जीवन पथ के चौराहे हमारे चरित्र के परीक्षा स्थल हैं। यहां किये गये प्रदर्शन से परिणाम तय होता है। परीक्षा का परिणाम मनुष्य की काबिलियत पर निर्भर करता है।


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