स्वामी वेदानंद कृत पुस्तक संध्यालोक : डा.विवेक आर्य

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करने को ब्रह्म यज्ञ कहते हैं। ईश्वर का स्तुति उनके अनंत गुणों का गान हैं। ईश्वर के गुण गान से ईश्वर जैसे न्यायकारी, दयालु, पाप-रहित, ईर्ष्या-द्वेष रहित, कल्याणकारी आदि गुणों का स्वभावत: उदय स्तुति करने वाले में होने लगता है। सांसारिक भोगों में लीन मनुष्य का मन स्थिर न होने के कारण इधर उधर विषयों में आकर्षित होता हैं। संध्या और उपासना के मन्त्रों द्वारा हम ऐसे विचार उत्पन्न करते हैं कि मन भिन्न भिन्न विषयों से हटकर ईश्वर में लीन हो जाये। निरंतर अभ्यास से मन और बुद्धि सात्विक हो जाती है। व्यक्ति की रूचि ज्ञान और भक्ति में होने लगती हैं। आस्तिकता के प्रभाव से व्यक्ति उत्तम कार्यों में प्रवृत होता है। उपासना ईश्वर के समीप बैठने को कहते है। संध्या मन्त्रों के द्वारा अर्थ और भावना के साथ संध्या करने से ही व्यक्ति ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता हैं। प्रस्तुत पुस्तक संध्यालोक के लेखक स्वामी वेदानन्द महान योगी थे। उन्होंने चिर काल तक योग साधना द्वारा आध्यात्मिक प्रगति के मार्ग का वरण किया था। अपने अनुभवों के आधार पर स्वामी वेदानन्द जी द्वारा लिखित यह पुस्तक पाठकों को संध्या के मन्त्रों के अर्थों का सरल बोध कराती हैं। वेद मन्त्रों के अर्थों पर पर्याप्त चिंतन-मनन करने से सभी योग मार्ग के पथिक बने। सांसारिक उन्नति के साथ साथ आध्यात्मिक उन्नति करने मात्र से ही सुख, शान्ति और समृद्धि का वास होगा। पाठकों के लाभार्थ स्वामी वेदानान्द जी महाराज की यह पुस्तक आपको इन्टरनेट द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही है। आशा है पाठक लाभान्वित होंगे।https://archive.org/details/SandiyalokSwamiVedanand


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