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Showing posts from July, 2019

नोएडा लोक मंच द्वारा हिंदी के महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की 139 वी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। 

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 नोएडा:-आज दिनाकं 31/7/19 को नोएडा लोक मंच द्वारा हिंदी के महान उपन्यासकार व संवेदनशील रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की 139 वी जयंती पर लोकमंच के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ की ओर से सम्मान कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद के पोते श्री अनिल राय व उनका परिवार के सदस्यों ने भी शिरकत की। साहित्य में रुचि रखने वाले अनेक नोएडा वासियों ने कार्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का भरपूर आनंद लिया और साथ ही साथ मुंशी प्रेमचंद के परिवार के साथ रूबरू होने का अवसर भी मिला। कार्यक्रम में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के प्रख्यात  रंगकर्मी व फिल्म निर्माता शंकर सुहैल गणमान्य अतिथियों में रहे। कार्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद जी के सुपौत्र श्री अनिल राय पुत्र श्री श्रीपत राय (पुत्र मुंशी प्रेमचंद ) व सुपौत्र अपूर्व राय पुत्र श्री विनय कुमार राय ( पुत्र मुंशी प्रेमचंद) भी उपस्थित रहे।   कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री योगेन्द्र नरायण, कुलाधिपति गढ़वाल विश्वविद्यालय ने की। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों को श्री शांतनु मुखर्जी शांतनु मुखर्जी, श्री कपिल पांडे, श्रीमती सुनीता सिंह व सबा बशीर, सैरा मुस्तफा व श्रीमत

एक ही गुरु मंत्र था-गायत्री।सभी का एक ही अभिवादन था-नमस्ते।एक ही विश्वभाषा थी-संस्कृत।

एक समय वह भी था जब सारे संसार का एक ही धर्म था-वैदिक धर्म।एक ही धर्मग्रन्थ था वेद।एक ही गुरु मंत्र था-गायत्री।सभी का एक ही अभिवादन था-नमस्ते।एक ही विश्वभाषा थी-संस्कृत।और एक ही उपास्य देव था-सृष्टि का रचयिता परमपिता परमेश्वर,जिसका मुख्य नाम ओ३म् है।तब संसार के सभी मनुष्यों की एक ही संज्ञा थी-आर्य।सारा विश्व एकता के इस सप्त सूत्रों में बँधा,प्रभु का प्यार प्राप्त कर सुख शान्ति से रहता था।दुनिया भर के लोग आर्यावर्त कहलाने वाले इस देश भारत में विद्या ग्रहण करने आते थे।अध्यात्म और योग में इसका कोई सानी नहीं था। किन्तु महाभारत युद्ध के पश्चात् ब्राह्मण वर्णीय जनों के 'अनभ्यासेन वेदानां' अर्थात् वेदों के अनभ्यास तथा आलस्य और स्वार्थ बुद्धि के कारण स्थिति बदली और क्षत्रियों में "जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाली एकतांत्रिक सामन्तवादी प्रणाली चल पड़ी।धर्म के नाम पर पाखंडियों अर्थात् वेदनिन्दक ,वेदविरुद्ध आचरण करने वालों की बीन बजने लगी,यह विश्वसम्राट् एवं जगतगुरु भारत विदेशियों का क्रीतदास बनकर रह गया।जो जगतगुरु सबका सरताज कहलाने वाला था उसे मोहताज बना दिया गया। दासता की इन्हीं बेड़िय

भारतीय किसान यूनियन भानु ने मुख्यकार्यपालक को चौदहसूत्रीय मांगों ज्ञापन सौपाँ।

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नोएडा-  भारतीय किसान यूनियन भानु का एक प्रीतिनिधिमंडल नोएडा प्राधिकरण की नवनियुक्त मुख्यकार्यपालक अधिकारी रितु माहेश्वरी से मिला और उन्हें नोएडा के किसानों की समश्याओ से अवगत कराया गया। मुख्यकार्यपालक अधिकारी ने समश्याओं को ध्यानपूर्वक सुना और सहानुभूतिपूर्वक विचार करके समाधान करने का आशवासन दिया।      प्रीतिनिधिमंडल का नेत्रत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन भानु के राष्ट्रीय महासचिव बेगराज गुर्जर ने मुख्यकार्यपालक को साथियों सहित चौदहसूत्रीय मांगों ज्ञापन सौपाँ। जिसमें सन, 2011में तत्कालीन मुख्यकार्यपालक अधिकारी द्वारा जहाँ है जैसी है के आधार पर आबादियों के निस्तारण का लिखित आशवासन को लागु करना, 2011 की किसानों की आवासीय स्कीम को उसी समय के रेट पर निस्तारण करना,1997 से अब तक के किसानों को 10% प्लॉट आवंटन करना व 64% का बढा हुआ मुआवजा देना, 5% के प्लाटों में 50% व्यवसायिक प्रयोग हेतु आवंटन लैटर में लिखकर देना, 1976 से1997 तक के सभी किसानों को 297 रू० प्रति गज का मुआवजा, 2015 से न्नियोजन विभाग में लबिंत किसानों के प्लाटों का जल्द आवंटन लैटर,किसानों के बच्चों को रोजगार, निशुल्क शिक्षा,चिकित्

मुंशी प्रेमचंद का गाय प्रेम 31 जुलाई को मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित

सामाजिक व राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत सुविख्यात उपन्यासकार प्रेमचंद उन दिनों गोरखपुर के एक विद्यालय में शिक्षक थे। उन्होंने गाय रखी हुई थी। एक दिन गाय चरते-चरते दूर निकल गई। प्रेमचंद गाय की तलाश करने निकले। उन्होंने देखा कि गाय अंग्रेज कलेक्टर की कोठी की बगीची में खड़ी है तथा अंग्रेज कलेक्टर उसकी ओर बंदूक ताने खड़ा कुछ बड़बड़ा रहा है। प्रेमचंद ने तुरंत बीच में पहुंचकर कहा, 'यह मेरी गाय है। निरीह पशु होने के कारण यह आपकी बगीची तक पहुंच गई है। मैं इसे ले जा रहा हूं।' अंग्रेज कलेक्टर ने आपे से बाहर होकर कहा, 'तुम इसे जिंदा नहीं ले जा सकते। मैं इसे अभी गोली मार देता हूं। इसकी हिम्मत कैसे हुई कि यह मेरे बंगले में आ घुसी।' प्रेमचंद जी ने उसे समझाते हुए कहा, 'यह भोला पशु है। इसे क्या पता था कि यह बंगला गोरे साहब बहादुर का है। मेहरबानी करके इसे मुझे ले जाने दें।' अंग्रेज अधिकारी का पारा और चढ़ गया। वह बोला, 'तुम काला आदमी इडियट है। अब इस गाय की लाश ही मिलेगी तुम्हें।' ये शब्द सुनते ही प्रेमचंद जी का स्वाभिमान जाग उठा। वे गाय व अंग्रेज के बीच आ खड़े हुए तथा चीखकर

नाग- पंचमी एक अवैदिक परम्परा अंधविश्वास व अधर्म है!

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भारत मे नाग पंचमी के दिनों सांपो को दूध पिलाने की परंपरा चालू हो गयी है जो कि वैदिक सिद्धान्तों औऱ वैज्ञानिक आधार के प्रतिकूल है। सांप एक वन्य जीव है और उसका भोजन चूहे छिपकिली आदि जीव है , दूध नही। विज्ञान के अनुसार भी सांप दूध नही पीता है , न ही उसे अच्छा लगता है। किंतु कुछ लोगो ने अपना पेट भरने के बहाने उसे दूध पिलाने का गलत रिवाज़ चालू कर दिया है। शरीर विज्ञान कहता है कि सांप को दूध पीना नही आता , और उसको जबर्दस्ती दूध पिलाने से उसकी श्वास नली बाधित हो जाती है और उससे उसकी मौत भी हो जाती है , दूध पीने से उसको अनेक रोग भी हो जाते हैं। फिर भी बलात उसे दूध पिला कर सपेरे अपना व्यवसाय करते हैं । अपने व्यापार के लिए उनको जंगलों से ढूंढ ढूंढ कर पकड़ते है उसको भूखा प्यासा रखते है उसके विष के दांत निकाल देते हैं और फिर उसे सड़को के किनारे दूध पिलाने का नाटक करके नादान लोगो से , अंध भक्तों से पैसे ऐंठते है। जो वस्तु जिसको प्रिय न हो उसको वह वस्तु खिला कर क्या कोई पुण्य का काम हो सकता है ? उल्टा वो जीव नाराज़ ही होगा।अतः हमें इन समस्त बातों को गौर करना चाहिए और नाग पंचमी के दिन उन्हें दूध पिला कर

श्री जी गौ सदन का प्रतिनिधिमंडल मिला मुख्य कार्यपालक अधिकारी से

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नोएडा- श्री जी गौ सदन  का प्रतिनिधिमंडल मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऋतु महेश्वरी जी से गौशाला की समस्याओं के समाधान के लिए मिला, श्रीजी को सदन के अध्यक्ष एनके अग्रवाल जी ने ऋतु महेश्वरी जी के समक्ष गौशाला  की सभी समस्याओं से अवगत कराया, जिसमें बताया गया कि श्री जी गौ सदन सेक्टर 94 में जमीन को कब्जा मुक्त करवाने, गायों के रखरखाव के बारे में, एवं गायों को दफनाने के लिए जगह उपलब्ध कराने के लिए विस्तृत रूप से मुख्य कार्यपालक अधिकारी के साथ मंथन किया गया , जिसमें ओएसडी राजेश सिंह जी भी मौजूद रहे , मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने आश्वस्त किया कि गायों के रखरखाव से संबंधित समस्याओं को जल्द से जल्द निवारण किया जाएगा, तथा जमीन को कब्जा मुक्त करने एवं गायों को दफनाने के लिए जगह उपलब्ध कराने के लिए अधिकारियों को 7 दिन के अंदर हल करने का आदेश दिया lजिसमें कि श्री जी को सदन के महासचिव एनके अग्रवाल जी परमात्मा शरण बंसल जी संजय गोयल जी राजीव गोयल एवं अन्य पदाधिकारी मौजूद रहे l

देश में फूट डालने वाला “आर्य और द्रविड़ का घोटाला” विदेशियों का आविष्कार है - श्रीमत् स्वामी समर्पणानन्दजी सरस्वती

[विदेशी इतिहासकारों एवं विद्वानों द्वारा भारतीय साहित्य के साथ जो भ्रष्टाचार होता रहा है उसके विरुद्ध आर्य समाज ने अपनी आवाज सदा बुलन्द की है एवं भारतीय साहित्य के यथार्थ रूप को हमारे सन्मुख प्रस्तुत करके पुनः हमें अपने गौरव की स्मृति करायी है। भारतीय साहित्य के साथ इस भ्रष्टाचार का एक उदाहरण एवं उसका प्रत्याख्यान आर्य समाज के धुरीण विद्वान् द्वारा प्रस्तुत है । -समीक्षक] भारत में फूट के लिए सबसे अधिक उत्तरदाता विदेशी शासन था, यद्यपि यह भी एक गोरखधन्धा है कि एकता के लिए भी सबसे अधिक उत्तरदाता विदेशी शासन था।  हमारी फूट के कारण विदेशी शासन हम पर आ धमका। देश के जागरूक नेताओं की बुद्धिमत्ता से एकता की आग प्रज्ज्वलित हुई। विदेशी शासक आग में ईधन, विदेशी अत्याचार घी का काम देते रहे। अन्त में विदेशी शासकों को भस्म होने से पूर्व ही भागना पड़ा। परन्तु अब विदेशी फूट डालने वालों का स्थान स्वदेशी स्वार्थियों ने ले लिया ।  हिन्दी के परम समर्थक तथा कम्युनिस्टों के परम शत्रु राज गोपालाचारी,अंग्रेजी के गिरते हुए दासतामय भवन के सबसे बड़े स्तम्भ बन गये ।  जो प्रोफेसर अंग्रेजी इतिहासकारों के आसनों पर आसी

वैदिक सिद्धांत के आधार पर जीवों को दो भागों में बाँटा गया है।

1. कर्म योनि  2. भोग योनि 1.कर्म योनि - पूर्णतया कर्म योनि संसार में कोई नहीं है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी जो कर्म योनि में आता है। पूर्णतया कर्म योनि में इसको भी नहीं कह सकते । यह भी उभय योनि में आता है ।  अर्थात उभय योनि उसे कहते हैं जिसमें कर्म भी किया जाता है और सुख दुःख का भोग भी किया जाता है ।  2. भोग योनि मनुष्य से इतर जितने भी प्राणी हैं वे सब भोग योनि हैं ।  वे सब मनुष्य योनि में किये वेद विरुद्ध, सिद्धांत विरुद्ध , आत्म विरुद्ध किए कर्मो का भोग भोगने के लिए हैं । इन योनियों में कोई भी शुभ अशुभ कर्म नहीं कर सकते हैं। कर्मो का फल भोगते भोगते मनुष्य योनि में जन्म लेने के कर्म शेष बचते हैं तभी मनुष्य का जन्म प्राप्त होता है। जीवात्मा तीन अवस्थाओं में रहता है ।  1. बद्ध अवस्था यथा कीट पतंग , पशु, पक्षी, आदि। 2. उभय अवस्था यथा मनुष्य । 3. मुक्त अवस्था यथा योग साधना करके कर्मबन्धन से मुक्त पूर्ण आनन्दमय आत्माएं। जिस प्रकार से किसी भी पदार्थ की तीन अवस्थाएं होती हैं । जैसे ठोस , द्रव , गैस ।  इसी प्रकार कोई भी आत्मा जब पाप कर्मों का फल भोगने के लिए भोग योनि में जाता है तो यह उसकी ठोस अवस

आतंकियों को मारने के दस फायदे!

आज सुबह से सुरक्षाबलों की आतंकियों के साथ मुठभेड़ चल रही थी। उसके बाद खबर आई कि जीनत उल इस्लाम और मुन्ना लाहौरी कुत्ते की मौत मरे। (कृपया 'कुत्ते की मौत' पर आहत न हों, आपकी इच्छा हो तो लोमड़ी, गीदड़ कुछ भी लगा सकते हैं) सुरक्षाबलों ने उन्हें मार गिराया। अब, जबकि वो मार गिराए गए हैं और भारत सरकार की नई जीरो टॉलरेंस नीति के हिसाब से साल के दो सौ आतंकी निपटाए जा रहे हैं, तो इससे कई सकारात्मक बातें सामने आती हैं। पहली तो यह है कि आतंकी मारे जा रहे हैं। ये बात सच है कि मारने में भारत सरकार की गोलियाँ खर्च हो रही हैं, लेकिन अगर उस खर्चे की आप 22-22 साल की न्यायिक प्रक्रिया के बाद फाँसी या जेल देने में हुए खर्चे से तुलना करें, जिसे बाद में इनके बापों की जनमपत्री निकालने वाले राडियाछाप पत्रकार और विश्वविद्यालयों को जेहाद और नक्सली आतंक का अड्डा बनाने वाले कामपंथी यह कह कर नकारते रहें कि ये एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग है, तो आप पाएँगे कि चंद गोलियों की कीमत और उनका इम्पैक्ट लॉन्ग रन के लिए सबसे सही है। इसलिए भारत माता के वीर सपूतों की जय बोलते रहिए जो इन आतंकियों को एक अच्छे स्ट्राइक रे

"फ्यूचर लाइन टाइम्स" हिंदी न्यूज़ पेपर को आवश्यकता है।

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"फ्यूचर लाइन टाइम्स" राष्ट्रवाद व समाजवाद पोषक हिंदी न्यूज़ पेपर " से जुड़ने के लिए संपर्क करें "फ्यूचर लाइन टाइम्स" हिंदी न्यूज़ पेपर हम को आवश्यकता है हर जिले व राज्य से ईमानदार, ऊर्जावान व अनुभवी युवक व युवती कि जो अपने आसपास की खबरों को व  समाज में हो रहे अनित कार्यों को उजागर कर सके ऐसे योग्य व्यक्ति पत्रकारिता से जुड़े। (आवश्यकता है ) जिला ब्यूरो चीफ  तहसील ब्यूरो तहसील रिपोर्टर  थाना रिपोर्टर  ब्लॉक रिपोर्टर  कैमरामैन  विज्ञापन प्रतिनिधि "फ्यूचर लाइन टाइम्स" हिंदी न्यूज़ पेपर से जुड़ने के लिए संपर्क करें नोट- फालतू के मैसेज व कॉल करके समय को बर्बाद ना करें -9313452979 whatsapp,     Futurelinetimes.page

आर्य लेखक परिषद 7 और 8 सितंबर 2019  को अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यकार आमंत्रित है ।

आर्य लेखक परिषद 7 और 8 सितंबर 2019  को अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यकारों को आमंत्रित कर  रही है जिसमें आर्य लेखकों साहित्यकारों पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की संस्था है ।संस्था ने पिछले 1 वर्षं में कई उपयोगी कार्य किए हैं जिसमें कार्यक्रमों का आयोजन स्टीकर, ट्रैक्ट और स्मारिका का प्रकाशन, पत्रिका और वेबसाइट का निर्माण जैसे अनेक कार्य शामिल है।मित्रो, संस्था 7 और 8 सितंबर 2019 यानी शनिवार और रविवार को अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यकारों को आमंत्रित कर  रही है जिसमें वैदिक वांग्मय के अलावा विभिन्न साहित्यिक विषयों पर खुलकर चर्चा होगी ,जो विद्वान साहित्यकार मित्र कार्यक्रम में भाग लेने की रुचि रखते हों वे अपना आरक्षण करा लें तिथि 7 व 8 सितंबर 2019 , स्थान -ऋषि उद्यान परोपकारिणी सभा आना सागर के पास अजमेर राजस्थान ।

यज्ञ का महत्व व यज्ञ का शाब्दिक अर्थ।

 देव पूजा, संगतिकरण और दान। देव पूजा अर्थात् अग्निहोत्र के माध्यम से प्रज्वलित अग्नि में घी और सामग्री से आहुति प्रदान करना। इस वैज्ञानिक प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण की शुद्धि होती है, जिसके लिए वेदों में बार-बार यज्ञ करने पर बल दिया गया है। इस आधुनिक सभ्य मानव के पास इतना समय नहीं कि वह यज्ञ कर सके। इसीलिए उसने सस्ता और शार्टकट रास्ता ढूंढ लिया है कि अगरबत्तियां जलाकर भगवान को प्रसन्न कर लिया जाए और वातावरण की भी शुद्धि हो जाए।क्या यह विधि उचित है  ? "अगरबत्ती के धुएं से कैंसर का खतरा  " चीन के एक शोध में दावा किया गया है कि अगरबत्ती से निकलने वाला धुआँ सिगरेट से भी खतरनाक साबित हो सकता है। अध्ययन के अनुसार सुगन्धित अगरबत्ती के धुएं में म्यूटाजेनिक, जीनोटाक्सिक, साइटोटाक्सिक जैसे विषैले तत्व होते है, जिनसे कैंसर होने का खतरा रहता है। अगरबत्ती के हानिकारक धुएं से शरीर में मौजूद जीन का रूप परिवर्तित हो जाता है। जो कैंसर और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां होने की पहली स्टेज है और जेनेटिक म्यूटेशन से डीएनए में भी परिवर्तन हो सकता है।आज हर मन्दिर में, दुकान में, घर में पूजा पाठ में

ऋषि शब्द की परिभाषा है वह अपूर्व , अद्भुत एवं निराली है ।

प्रत्यर्धिर्यज्ञानामश्वहयो रथानाम्। ऋषि: स यो मनुर्हितो विप्रस्य यावयत्सख: ॥ (ऋ० १० । २६ । ५) शब्दार्थ :- (ऋषि: स:) ऋषि वह है (य:) जो (यज्ञानां प्रति अर्धि:) यज्ञों का प्रतिपादक है, जो यज्ञ के तुल्य शुद्ध , पवित्र , एवं निष्पाप है , (रथानाम् अश्व:-हय:) जो रथों का = जीवन-रथों का आशु प्रेरक है , शीघ्र संचालक है , शुभ कर्मो का प्राण है , (मनु: हित:) जो मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाला है , (विप्रस्य सख:) जो ज्ञानी , बुद्धिमान और धार्मिक व्यक्तियों का सखा है , (यावयत्) जो सब दुखों को दूर कर देता है । भावार्थ :- ऋषि कौन है ? विभिन्न ग्रन्थों में ऋषि शब्द की विभिन्न व्याख्याएँ मिलेंगी। वेद की जो ऋषि शब्द की परिभाषा है वह अपूर्व , अद्भुत एवं निराली है । ऋषि के लक्षणों का वर्णन करते हुए वेद कहता है –  ऋषि वह है जो यज्ञों = श्रेष्ठ कर्मों का सम्पादन करता है , जो स्वयं यज्ञ के समान पवित्र एवं निर्दोष है और शुभ कार्यों को ही करता है ।  ऋषि वह है जो जीवन रथों को शीघ्र प्रेरणा देता है , जो कुटिल , दुराचारी , व्यभिचारी , व्यक्तियों को भी अपनी सुप्रेरणा से सुपथ पर चलता है ।ऋषि वह है जो बिना किसी भेद

राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों मे कौन -कौन थे ?

  अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया, पर महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है ! जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके कुछ धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे । राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं ... राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन। राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे। ये हैं नवरत्न – धन्वन्तरि-:नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। *वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं।* चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी 'धन्वन्तरि' से उपमा दी जाती है। क्षपणक-:जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे। इससे एक बात य

Hyundai की Kona भारत की पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी है

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जब बात बेहतरीन डिजाइन, लेटेस्ट फीचर्स, सेफ्टी और परफॉर्मेंस की हो, वहां Hyundai का नाम सबसे आगे आता है।भारत में Hyundai की जितनी भी कार लॉन्च हुई हैं, उन सभी कारों ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई है। Kona भी Hyundai की ऐसी ही एक कार है, जिसकी लोकप्रियता लॉन्च के बाद से ही बढ़ती जा रही है। बता दें कि Kona भारत की पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी है, जिसकी रेंज 452 किलोमीटर है। यह 9.7 सेकंड में 0 से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है। इसके अलावा कोना डिजाइन के मामले में भी एक जबरदस्त कार है और इसमें कई नए फीचर्स भी हैं। 

1850 तक भारत देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे ।

भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ? कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद | 1858 में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग 'लोर्ड मैकोले' ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro ! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Litnar, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है | मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे | मैकाले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है : “कि जैसे

मनुस्मृति वेदानुकूल मानव जाति का बहुमूल्य संविधान है

वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था से पूरी तरह अलग है। जाति कभी बदली नहीं जा सकती वर्ण बदला जा सकता है। महर्षि मनु मनुस्मृति में लिखते हैं - ब्राह्मण शूद्र बन सकता है और शूद्र ब्राह्मण इसी तरह क्षत्रिय वैश्य बन सकता है और वैश्य क्षत्रिय। यजुर्वेद कहता है - ब्राह्मण इस मानव समाज का सिर है, क्षत्रिय बाहु (हाथ ) है, वैश्य पेट है तथा शूद्र पैर है। यजुर्वेद में ही लिखा है - हे परमात्मा - हमारे ब्राह्मणों में तेज व ओज दो, हमारे शासक वर्ग में (क्षत्रिय), तेज व ओज दो, वैश्य तथा शूद्र में तेज ओज दो। मुझ में भी तेज ओज पराक्रम दो । अथर्ववेद में लिखा है - हे परमात्मा - मुझे देवों मे (श्रेष्ठ व्यक्तियों मे / ब्राह्मणो मे), प्रिय करो, मुझे क्षत्रियों मे प्रिय करो मुझे वैश्य व शूद्र में प्रिय करो। ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है, जन्म के आधार पर नहीं । यह बात सिर्फ़ कहने के लिए ही नहीं है, प्राचीन समय में इस का व्यवहार में चलन था ।जब से इस गुणों पर आधारित वैज्ञानिक व्यवस्था को हमारे दिग्भ्रमित पुरखों ने मूर्खतापूर्ण जन्मना व्यवस्था में बदला है, तब से ही हम पर

चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस पर विशेष - जानकी शरण वर्मा

चंद्रशेखर आजाद ने अपनी फरारी के करीब 5 साल बुंदेलखंड में गुजारे थे। इस दौरान वे ओरछा और झांसी में भी रहे। ओरछा में सातार नदी के किनारे गुफा के समीप कुटिया बना कर वे डेढ़ साल रहे। फरारी के समय सदाशिव उन विश्वसनीय लोगों में से थे, जिन्हें आजाद अपने साथ मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा गांव ले गए थे। यहां उन्होंने अपने पिता सीताराम तिवारी और मां जगरानी देवी से उनकी मुलाकात करवाई थी। सदाशिव, आजाद की मृत्यु के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करते रहे। कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा। आजादी के बाद जब वह स्वतंत्र हुए, तो वह आजाद के माता-पिता का हालचाल पूछने उनके गांव पहुंचे। वहां उन्हें पता चला कि चंद्रशेखर आजाद की शहादत के कुछ साल बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई थी। आजाद के भाई की मृत्यु भी उनसे पहले ही हो चुकी थी।  पिता के निधन के बाद आजाद की मां बेहद गरीबी में जीवन जी रहीं थी। उन्होंने किसी के आगे हाथ फैलाने की जगह जंगल से लकड़ियां काटकर अपना पेट पालना शुरू कर दिया था। वह कभी ज्वार, तो कभी बाजरा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं। क्योंकि दाल, चावल, गेंहू और उसे पकाने के लिए ईंधन खरीदने ल

विकासवाद का वैदिक सिद्धान्त - आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

बीजेपी सांसद ने डॉ सत्यपाल सिंह जी ने संसद में फिर कहा कि मानव, बंदर नहीं ऋषियों के वंशज है। उनका विरोध करते हुए DMK सांसद कनिमोझी ने कहा, 'दुर्भाग्य से, मेरे पूर्वज ऋषि नहीं हैं. मेरे पूर्वज होमो सेपियंस हैं, जैसा कि विज्ञान कहता है, और मेरे माता-पिता शूद्र हैं। उन्होंने कहा कि 'वे किसी भगवान, या किसी भगवान के अंश से भी पैदा नहीं हुए थे।  वे बाहर पैदा हुए थे और मैं यहाँ हूँ और मेरे राज्य के कई लोग सामाजिक न्याय आंदोलन और मानवाधिकारों के कारण यहाँ हैं जो हमने आज तक लड़े और हमने वह ऐसा करना जारी रखेगी। सिंह के तर्क का विरोध करते हुए, टीएमसी सांसद सुगाता रॉय ने कहा कि टिप्पणी संविधान का विरोध है। रॉय ने कहा 'संविधान का अनुच्छेद 51 (ए), उप-धारा (एच) कहता है कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करे।  डॉ सत्यपाल सिंह के बयान का हम पुरजोर समर्थन करते है। डार्विन का विकासवाद किसी प्रयोगशाला में सिद्ध हुआ कोई वैज्ञानिक प्रयोग नहीं हैं।अपितु एक काल्पनिक विचार है। जो ईश्वर की सत्ता को ससृष्टि रचियता के रूप मे

श्रावणी पर्व की आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं सामाजिक आधार पर महत्ता-: डॉ विवेक आर्य

सावन मास श्रावण का परिवर्तित नाम है। इस मास की वैदिक महत्ता ऋषि मुनियों के समय से प्रचलित है।विक्रमी संवत के अनुसार श्रावण पांचवा मास है। प्राचीन काल में श्रवण मास को जीवन का अभिन्न अंग समझा जाता था। कालांतर में विदेशी संस्कृति के प्रचार से जनमानस इसे भूल गया है। श्रावणी पर्व के तीन लाभ है।आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं सामाजिक आध्यात्मिक पक्ष-श्रावण का अर्थ होता है जिसमें सुना जाये। अब सुना किसे जाता है। संसार में सबसे अधिक महत्वपूर्ण ईश्वरीय ज्ञान वेद है। इसलिए इस मास में वेदों को सुना जाता है। श्रावण में गर्मी के पश्चात वर्षा आरम्भ होती है। वर्षा में मनुष्य को राहत होती है। चित वातावरण के अनुकूल होने के कारण शांत हो जाता है। मन प्रसन्न हो जाता है। वर्षा होने के कारण मनुष्य अधिक से अधिक समय अपने घर पर व्यतीत करता है। ऐसे अवसर को हमारे वैज्ञानिक सोच रखने वाले ऋषियों ने वेदों के स्वाध्याय, चिंतन, मनन एवं आचरण के लिए अनुकूल माना। इसलिए श्रावणी पर्व को प्रचलित किया। वेदों के स्वाध्याय एवं आचरण से मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति करे। यही श्रावणी पर्व का आध्यात्मिक प्रयोजन है। वैज्ञानिक पक्ष-श्रा

पुराण किसने बनाये? धर्मवीर पण्डित लेखराम आर्यपथिक

अठारह पुराण(मारकण्डेय, भविष्य, भागवत, ब्रह्मवैवर्त्त, ब्रह्माण्ड, शिव, विष्णु, वराह, लिंग, पद्म, नारद, कूर्म, मत्स्य, अग्नि, ब्रह्म, वामन, स्कन्द गरुड) और अठारह उपपुराण (आदि, नरसिंह, वामन, शिवधर्म, दुर्वासा, कपिल, नारद, वरुण, साम्ब, कलकी, महेश्वर, सौर, स्कन्द पराशर, मारीच भास्करः, औशनस, ब्रम्हा) व्यास जी ने बनाये हैं जो कि पराशर के पुत्र थे और महाराजा युधिष्ठिर के समय में विद्यमान थे। जिस समय से वर्तमान काल के कलियुग का प्रारम्भ होता है जिसको आज तक (अर्थात १९४८ तक) 4991 वर्ष होते हैं, किन्तु पुराणों के अध्ययन से प्रगट होता है कि उनका यह विचार उपयुक्त नहीं है, यह बात निम्नलिखित प्रमाणों से प्रमाणित हो जाएगी। आशा है कि धर्म के जिज्ञासु पक्षपात रहित होकर इसे पढ़ेंगे। प्रथम प्रमाण -अठारह पुराणों में बुद्ध को अवतार स्वीकार किया है और जिस लेख में वर्णन है, उसमें से उनका अतीत काल प्रतीत होता है, भविष्य का नहीं। जो उनकी रहन सहन की पद्धति वर्णित है, वह आजकल के जैनियों के (पूज्यों) गुरुओं से ठीक मिलती है उससे स्पष्ट प्रगट है कि जिस समय अठारह पुराण बनाये गए, उससे पूर्व बुद्ध का अवतार हो चुका था।

दक्षिण के लोग और द्रविड़ आर्य हैं।

  -डॉ० सुरेन्द्रकुमार भारतीय शिक्षा-पद्धति में सुधार, परिष्कार और समयानुकूल परिवर्तन हेतु नीति-निर्धारण के लिए भारत सरकार ने विगत समय में प्रसिद्ध वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। उस समिति ने अपने सुझावों का प्रारूप ३१ मई २०१९ को मानव संसाधन मन्त्रालय को सौंप दिया। समिति ने अपने प्रारूप में 'त्रिभाषा फार्मूला' को पुनः लागू करने की सिफारिश की थी, जिसके अनुसार प्रत्येक विद्यार्थी को अपनी मातृभाषा, राष्ट्रभाषा हिन्दी और अन्तर-राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी इन तीनों भाषाओं को आरम्भ से ही पढ़ना प्रस्तावित था। यद्यपि यह विचारार्थ केवल प्रारूप था जिस पर सरकार और जनता के विचार लिए जाने थे, किन्तु दक्षिण के, विशेषतः तमिलनाडु के राजनेताओं ने त्वरित प्रभाव से इसका विरोध करना आरम्भ कर दिया। अभी विरोध का दौर शुरुआत में ही था कि वर्तमान भारत सरकार इतनी भयभीत हो गई कि उसके चार-पांच वरिष्ठ मन्त्री मीडिया के माध्यम से बचाव में आ गये और उन्होंने अप्रत्याशित रूप से यह घोषणा कर दी कि सरकार ने त्रिभाषा फार्मूले अर्थात् हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन के प्रस्ताव को प्