पुराण किसने बनाये? धर्मवीर पण्डित लेखराम आर्यपथिक

अठारह पुराण(मारकण्डेय, भविष्य, भागवत, ब्रह्मवैवर्त्त, ब्रह्माण्ड, शिव, विष्णु, वराह, लिंग, पद्म, नारद, कूर्म, मत्स्य, अग्नि, ब्रह्म, वामन, स्कन्द गरुड) और अठारह उपपुराण (आदि, नरसिंह, वामन, शिवधर्म, दुर्वासा, कपिल, नारद, वरुण, साम्ब, कलकी, महेश्वर, सौर, स्कन्द पराशर, मारीच भास्करः, औशनस, ब्रम्हा) व्यास जी ने बनाये हैं जो कि पराशर के पुत्र थे और महाराजा युधिष्ठिर के समय में विद्यमान थे। जिस समय से वर्तमान काल के कलियुग का प्रारम्भ होता है जिसको आज तक (अर्थात १९४८ तक) 4991 वर्ष होते हैं, किन्तु पुराणों के अध्ययन से प्रगट होता है कि उनका यह विचार उपयुक्त नहीं है, यह बात निम्नलिखित प्रमाणों से प्रमाणित हो जाएगी। आशा है कि धर्म के जिज्ञासु पक्षपात रहित होकर इसे पढ़ेंगे।


प्रथम प्रमाण -अठारह पुराणों में बुद्ध को अवतार स्वीकार किया है और जिस लेख में वर्णन है, उसमें से उनका अतीत काल प्रतीत होता है, भविष्य का नहीं। जो उनकी रहन सहन की पद्धति वर्णित है, वह आजकल के जैनियों के (पूज्यों) गुरुओं से ठीक मिलती है उससे स्पष्ट प्रगट है कि जिस समय अठारह पुराण बनाये गए, उससे पूर्व बुद्ध का अवतार हो चुका था। (देखो शिव पुराण पूर्वार्द्ध खण्ड 1 अ. 5-3-9)


किन्तु इतिहास के विशेषज्ञों ने, चिह्न, स्मृति, स्तम्भ और बौद्ध मन्दिरों तथा आर्यावर्त, लंका, ब्रह्मा, चीन और तिब्बत की पुस्तकों और अजाएब घरों की मूर्तियों से खोज की है कि बुद्ध विक्रमाजित संवत् से 614 वर्ष पूर्व हुए थे और 80 वर्ष जीवित रहकर निधन को प्राप्त हुए, जिसे आज तक दो सहस्र पांच शत बासठ वर्ष(२५६२ वर्ष) होते हैं और व्यास जी को चार सहस्र नौ सौ इकानवे वर्ष(४९९१ वर्ष) [आर्य पथिक श्री पं० लेखराम जी ने अपनी पुस्तकों में जहां-जहां तिथियों की गणना लिखी है, वह गणना उस पुस्तक मुद्रण काल से लिखी गई है। -अनुवादक] हुए हैं अर्थात् बुद्ध दो सहस्र चार सौ उन्नीस वर्ष व्यास जी के पीछे हुए हैं। इससे सिद्ध हुआ कि व्यास जी पुराणों के रचयिता नहीं थे।

द्वितीय प्रमाण -समस्त इतिहासज्ञ इस बात को स्वीकार करते हैं कि रामानुज विक्रमादित्य की द्वादशवीं शती में हुए किन्तु वैष्णव मत का खण्डन लिंग पुराण में विद्यमान है।


शंख चक्रे तापयित्वा यस्य देहः प्रशस्यते।
संजीवन् कुणपस्त्याज्यः सर्वधर्म बहिष्कृतः। लिंग पुराण
जिससे शरीर पर तपाकर शंख चक्र के चिह्न लगाये गए हैं वह जीता हुआ भी मृतवत है और सर्व धर्म कार्यों से बहिष्कृत कर देने के योग्य है।


इससे प्रगट होता है कि रामानुज के मत के पश्चात् लिंग पुराण में उसका खण्डन हुआ। क्योंकि यह सर्व सम्मत है कि जो बात न हो चुकी हो उसका खण्डन नहीं हो सकता और लिंग पुराण अठारह पुराणों में संख्यात है। अत: रामानुज विक्रमाजित जी बारहवीं शती में हुए हैं, अर्थात आज तक उनको हुए 748 वर्ष हुए हैं और जैसाकि ऊपर लिखा जा चुका है कि व्यास जी को 4991 वर्ष हुए हैं जिससे सिद्ध है कि व्यास जी से रामानुज 4243 वर्ष पीछे हुए है अत: लिंग पुराण व्यास देव कृत नहीं हो सकता।

तृतीय प्रमाण -तौज़के जहांगीरी नामक पुस्तक में जहांगीर बादशाह लिखता है कि मेरे पिता के राज्यकाल में अमरीका से एक पादरी आलु, तम्बाकू, गोभी यह तीन वस्तुयें लाया था। इस बात पर समस्त ऐतिहासिक एक मत हैं किन्तु ब्रह्माण्ड पुराण में लिखा है कि -


प्राप्ते कलियुगे घोरे सर्ववर्णाश्रिमे नरः।
तमालं भक्षितं येन स गच्छेन्नरकार्णवे॥ ब्रह्माण्ड पुराण
इस घोर कलियुग में जो मनुष्य तम्बाकू का सेवन करता है वह नरक को जाता है। और पद्म पुराण में लिखा है कि -


धूम्रपानरतं विप्रं दानं कृण्वंतिये नराः।
दातारी नरकं यान्ति ब्राह्मणो ग्राम शूकरः॥ पद्म पुराण
जो मनुष्य तम्बाकू पीने वाले को दान देते हैं वह नरक गामी होते हैं और वह तम्बाकू सेवी ब्राह्मण ग्रामों में शूकर का जन्म लेता है।


हिन्दुओं की किसी धर्म पुस्तक में तम्बाकू का निषेध नहीं है और तम्बाकू अमरीकी भाषा का शब्द है और बाबा नानक जी से लेकर उनकी सातवीं बादशाही तक किसी ने तम्बाकू पीने का खण्डन नहीं किया क्योंकि यह उस काल में विद्यमान नहीं था। जब जहांगीर बादशाह के राज्यकाल में उसकी प्रथा चली तो औरंगजेब के राज्य काल में दसवीं बादशाही के समय उसका निषेध किया गया। इससे प्रगट होता है कि ब्रह्माण्ड और पद्म पुराण दोनों जहांगीर के पिता अकबर के राज्यकाल से पीछे बनाये गए और सम्राट् अकबर का राज्यकाल विक्रमाजित के संवत् 1613 से 1662 तक हुआ था।


इससे सिद्ध होता है कि ब्रह्मांड और पद्मपुराण व्यास जी के निर्मित नहीं है। क्योंकि व्यास जी को हुए 4991 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इन पुराणों को निर्मित हुए (1948-1662)-286 वर्ष हुए हैं।


चतुर्थ प्रमाण -स्वामी शंकराचार्य रामानुज से पूर्व हो चुके थे क्योंकि रामानुज ने शांकरभाष्य का निषेध किया है। सभी में यह बात प्रगट है कि शंकराचार्य सर्व संसार को माया और स्वयं को ब्रह्म मानते थे और सभी हिन्दू शंकराचार्य को महादेव का अवतार मानते हैं और उनका बुद्ध से पूर्व होना सम्भव नहीं क्योंकि उन्होंने बौद्धों का खण्डन किया है। पद्म पुराण में पार्वती जी के उत्तर में महादेव कहते हैं कि -


मायावादमसच्छास्त्रं प्रच्छंन्नबौद्धमेव च।
मयैव कथितं देवि कलौ ब्राह्मणरूपिणा॥
अर्थ- हे देवि ! कलियुग में मैंने ब्राह्मण का रूप धारण करके असत शास्त्र, प्रच्छन्न बौद्ध मायावाद का कथन किया।


अतः 'पद्म पुराण', बुद्ध, शंकर और रामानुज के पश्चात् बना है। यह व्यास जी का बनाया हुआ कभी भी नहीं हो सकता।

पंचम प्रमाण -जगन्नाथ का मन्दिर संवत् 1231 विक्रमी में उड़ीसा के राजा अनंग भीमदेव ने बनवाया था, इससे पूर्व नहीं था। इसमें सभी ऐतिहासिक एकमत हैं। और मन्दिर में भी संवत् लिखा हुआ है किन्तु मन्दिर का महात्म्य स्कंद पुराण में लिखा है, अतः स्कंद पुराण संवत् 1231 विक्रमी के पीछे बना और व्यास देव का बनाया हुआ कभी नहीं हो सकता।


षष्ठ प्रमाण-समस्त विद्वानों की इस विषय में सहमति है कि अठारह पुराण महाभारत से पीछे बनाये गए हैं और पुराणों में महाभारत का वर्णन है परन्तु महाभारत में पुराणों का उल्लेख नहीं है और सभी जानते हैं कि शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को भागवत सुनाया था। इतिहास देखने से ज्ञात होता है कि कौरव पांडव युद्ध के पश्चात महाराजा युधिष्ठिर सिंहासनारूढ़ हुए थे, उन्होंने 26 वर्ष 8 मास और 25 दिन राज्य किया। उनके मरणानंतर राजा परीक्षित ने 60 वर्ष राज्य किया।


भागवत में लिखा है कि राजा परीक्षित के राज्य समाप्ति काल अर्थात् महाभारत के 86 वर्ष के पश्चात् शुकदेव जी ने उनको भागवत सुनाया किन्तु महाभारत के शान्ति पर्व के 332 और 333 अध्यायों से सिद्ध होता है कि जब युद्ध समाप्त हुआ और भीष्म जी के अन्त समय पर युधिष्ठिर , जी उनसे उपदेश सुनने गये तब उन्होंने शुकदेव जी का वर्णन करते हुए कहा कि बहुत समय हुआ कि उनकी मृत्यु हो गई और उनके मरने पर व्यास जी का शोक मग्न होना भी लिखा है। युधिष्ठिर जी इस प्रकार से पूछते हैं, मानो उन्होंने देखा ही नहीं था और उस समय राजा परीक्षित गर्भ में थे। जब परीक्षित के जन्म से पूर्व ही शुकदेव जी मर गये थे तो उनको 96 वर्ष पश्चात् भागवत सुनाना असम्भव है, और सत्य यह है जैसा कि *देवी भागवत के अनुवादक ने लिखा है कि वास्तव में भागवत बोपदेव ने रचा है* और भागवत शुकदेव ने नहीं सुनाया तथा परीक्षित ने नहीं सुना, *जिनसे व्यास देव बहुत पहिले हो चुके हैं तो सिद्ध हुआ कि व्यास देव जी भागवतकार नहीं हैं।


सप्तम प्रमाण - पद्म पुराण के उत्तरखण्ड के भागवत महात्म्य के प्रथमाध्याय में श्लोक 28 से 32 तक लिखा है कि नारद जी व्याकुल अवस्था में सनकादि को मिले और कहा कि काशी, सोमनाथ, रामेश्वर आदि स्थानों पर यवनों ने मन्दिरों को गिरा दिया और उन पर अधिकार कर लिया अर्थात मस्जिदें बनालीं और यही अवस्था आश्रमों की हुई। स्पष्ट है कि यह अब महमूद के समय से औरंगजेब के समय तक होती रही। अतः स्पष्ट प्रगट है कि पद्म पुराण को बने हुए संवत् 1014 से 1326 का समय हुआ है।


अष्टम प्रमाण -अठारह पुराणों में ऋषि मुनियों और देवताओं की निन्दा लिखी है और उन पर मिथ्या कलंक लगाये हैं ? जैसा कि -
1. ब्रह्मा जी पर पुत्री समागम का कलंक।
2. कृष्ण जी को कुब्जा और राधिका के साथ।
3. महादेव जी को ऋषि पत्नियों से।
4. विष्णु को जलंधर की स्त्री वृंदा से।
5. इन्द्र को गौतम की स्त्री से।
6. सूर्य को कुन्ती से।
7. चंद्रमा को अपने गुरु बृहस्पति को स्त्री तारा से।
8. वायु देवता को केसरी की स्त्री अंजना से।
9. वरुण देवता को अगस्त्य देवता की माता उर्वशी से।
10 बृहस्पति को अपने भाई की स्त्री ममता से।
11. विश्वामित्र को उर्वशी से।
12, पराशर को मत्स्योदरी से।
13. व्यास देव को दासी से।
14. द्रौपदी को पांच पतियों से।
15. देवियों को मांसभक्षा से।
16. वामन को छल से।
17. बलदेव को मद्यपान से कलंकित किया है तथा
18. रामचंद्र को छल से सूरमा बालि के वध आदि का कलंक तथा सब ऋषि, मुनि, देवताओं पर कलंक लगाया परन्तु बुद्ध पर कोई कलंक नहीं लगाया और नास्तिक मत को कई स्थानों पर प्रगट किया है, इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि पुराणों के रचयिता बौद्ध हैं, व्यासदेव जी नहीं।


नवम प्रमाण -व्यास कृत वेदान्त सूत्रों और योग भाष्य से संसार में स्पष्ट रूप से उनका धर्म समस्त विद्वानों पर प्रगट है किन्तु यह अठारह पुराण उनके स्पष्ट विरुद्ध हैं उनका अभिप्राय उनके लिये शास्त्रों से नहीं मिलता इससे अच्छी प्रकार विदित होता है कि यह पुराण उनके द्वारा निर्मित नहीं हैं।


दशम प्रमाण-देवी भागवत में लिखा है कि एक राजा का लड़का किसी एक म्लेच्छ वेश्या पर आसक्त होकर पतित हो गया। यह बात तो सूर्यवत् स्पष्ट है कि जब मुसलमान नहीं आए थे तब मुसलमान वेश्याएं भी न थीं तो उन पर कोई आसक्त भी न हो सकता था अतः इससे प्रगट है कि देवी भागवत मुस्लिम काल में बना है और व्यासदेव जी ने नहीं बनाया है।
धर्म शास्त्र के अनुसार ब्राह्मण का कार्य पढ़ना और पढ़ाना है जैसा कि मनुस्मृति में लिखा है कि-


योऽनधीत्यते द्विजो वेदमन्यत्र कुरूते श्रमम्।
सजीवन्नेव शूद्रत्वमाशुगच्छति सान्वयः॥
अर्थ-जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वेदों को नहीं पढ़ता और अन्य कार्यों में परिश्रम करता है। तो वह जीवन में ही शीघ्र सपरिवार शूद्रत्व को प्राप्त करता है। देखिये अत्रीस्मृति में भी लिखा है कि -


वेदर्विहीनाश्च पठन्ति शास्त्रं शास्त्रेण हीनाश्च पुराण पाठाः।
पुराण हीना कृषिणो भवन्ति भ्रष्टास्ततो भागवताः भवन्ति ।
अर्थ-वेद विहीन लोग शास्त्र पढ़ते हैं, शास्त्र से पतित लोग पुराण पढ़ते हैं, पुराण विहीन लोग कृषि कार्य करते हैं और सबसे पतित लोग भागवत पढ़ने वाले होते हैं।


जहांगीर के राज्यकाल में भक्त तुलसीदास जी का निधन हुआ था।
यथा-
संवत सोलह सौ अस्सी असी गंग के तीर।
सावन शुक्ला पंचमी तुलसी तज्यो शरीर॥
जहागीर संवत् 1684 में दिवंगत हुआ था। इससे सिद्ध हुआ कि तुलसी रामायण को बने हुए 1948-1684 मात्र 264 वर्ष हुए।
इन प्रमाणों से स्पष्ट प्रगट होता है कि समस्त पुराण नवीन हैं। केवल चारों वेद ही सनातन हैं।


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