नाग- पंचमी एक अवैदिक परम्परा अंधविश्वास व अधर्म है!

भारत मे नाग पंचमी के दिनों सांपो को दूध पिलाने की परंपरा चालू हो गयी है जो कि वैदिक सिद्धान्तों औऱ वैज्ञानिक आधार के प्रतिकूल है।
सांप एक वन्य जीव है और उसका भोजन चूहे छिपकिली आदि जीव है , दूध नही।
विज्ञान के अनुसार भी सांप दूध नही पीता है , न ही उसे अच्छा लगता है। किंतु कुछ लोगो ने अपना पेट भरने के बहाने उसे दूध पिलाने का गलत रिवाज़ चालू कर दिया है। शरीर विज्ञान कहता है कि सांप को दूध पीना नही आता , और उसको जबर्दस्ती दूध पिलाने से उसकी श्वास नली बाधित हो जाती है और उससे उसकी मौत भी हो जाती है , दूध पीने से उसको अनेक रोग भी हो जाते हैं। फिर भी बलात उसे दूध पिला कर सपेरे अपना व्यवसाय करते हैं ।
अपने व्यापार के लिए उनको जंगलों से ढूंढ ढूंढ कर पकड़ते है उसको भूखा प्यासा रखते है उसके विष के दांत निकाल देते हैं और फिर उसे सड़को के किनारे दूध पिलाने का नाटक करके नादान लोगो से , अंध भक्तों से पैसे ऐंठते है।
जो वस्तु जिसको प्रिय न हो उसको वह वस्तु खिला कर क्या कोई पुण्य का काम हो सकता है ? उल्टा वो जीव नाराज़ ही होगा।अतः हमें इन समस्त बातों को गौर करना चाहिए और नाग पंचमी के दिन उन्हें दूध पिला कर भक्ति आदि का विचार नहीं लाना चाहिए। उल्टा उसे दुध पिला कर हम पाप का काम करते है एक तो उनको अपने प्राकृतिक स्थान से ( जंगलों , बिलों से) निकालते है फिर उनको यातनाएं देते है फिर उनके भोजन के लिए एकमात्र दांतो को निकलवा कर उसको असहाय बना देते हैं और फिर उसको बिना रुचि वाला भोजन देकर अस्वस्थ कर देते है , ये सब पाप नही तो क्या है? इससे अच्छा है हम वन्य जीवों का संरक्षण करे और दूध किसी गरीब बेबस लाचार बच्चों को पिलाये तो हमे पुण्य मिलेगा और समाज का उत्थान भी होगा।
पूजा का अर्थ 'किसी भी वस्तु का सही सही ज्ञान और उसका यथायोग्य उपयोग' होता है , यहां हम प्रकृति व विज्ञान के विरुद्ध आचरण करते है और उसको पूजा मानते हैं जो कि सरासर गलत है। अतः हमें ऐसे ढोंग , अंधविश्वास व पाखण्डों से बचना चाहिए और समाज को बचाना चाहिए।


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