विजय सिंह पथिक वीर क्रांतिकारी जैसे महान व्यक्तित्व को आज तक वह सम्मान नहीं मिला जो सम्मान मिलना चाहिए था !

कर्मवीर आर्य संवाददाता दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतमबुद्धनगर।
दादरी। विजय सिंह पथिक : एक परिचय  विजय सिंह पथिक जैसे महान व्यक्तित्व को आज तक वह सम्मान नहीं मिला जो सम्मान मिलना चाहिए था। वीर विजय सिंह पथिक महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रबुद्ध लेखक, प्रगतिशील विचारक, प्रतिभाशाली कवि, प्रखर पत्रकार, निर्भीक क्रांतिकारी, सफल आंदोलनकारी, कुशल संगठनकर्ता, यशस्वी संपादक, ओजस्वी वक्ता, राजस्थान के जनक, रियासती प्रजा के पहले हिमायती, देश के प्रथम किसान सत्याग्रही, जनजागृति के अग्रदूत, समाज सुधार के अगवा, सामाजिक बुराइयों के कट्टर विरोधी, विश्व प्रसिद्ध बिजोलिया आंदोलन के नायक, विलक्षण प्रतिभा संपन्न, बहु भाषाविद और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे l यह छोटा सा परिचय है स्वर्गीय विजय सिंह पथिक का l उनका दूसरा परिचय यह है कि वे रासबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल, खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी और जमुना लाल बजाज के साथी, सहयोगी व सहकर्मी थे l पथिक जी का तीसरा परिचय यह है कि वह हिंदी उर्दू संस्कृत बंगला गुजराती मराठी राजस्थानी और अंग्रेजी भाषाओं के अच्छे जानकार थे l इन तमाम भाषाओं में उन्होंने 32 पुस्तकें लिखीं जिनमें राजनीति और विज्ञान सम्बन्धी लेख, कहानी, नाटक, उपन्यास, कविता, अनुवाद, हास्य व्यंग, संस्मरण, इतिहास और दर्शन की पुस्तकें शामिल हैं l पथिक जी को देश में आम तौर पर बिजोलिया किसान आंदोलन के नायक के तौर पर ही जाना जाता है जबकि रियासती प्रजा की स्वतंत्रता को कांग्रेस के एजेंडे में शामिल कराने की उससे भी बड़ी उनकी उपलब्धि है l वे अजमेर राजपूताना मध्य भारत कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष रहे l उन्होंने छह अखबारों का संपादन भी किया l विजय सिंह पथिक का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर स्थित ग्राम गुठावली अख्तियारपुर के एक देशभक्त गुर्जर किसान परिवार में हुआ था l इनके दादा इंदर सिंह राठी अट्ठारह सौ सत्तावन के स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए थे l इनके पिता हमीर सिंह राठी और माता कमल कुमरी भी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल रहे थे l विजय सिंह पथिक का असली नाम भूप सिंह राठी था l अंग्रेज सरकार की नजरों से बचने के लिए बाद में उन्होंने अपना नाम और वेशभूषा बदल ली थी l पथिक जी अपने प्रारंभिक जीवन में सशस्त्र क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित रहे l वह शचीन्द्रनाथ सान्याल और रासबिहारी बोस के निकट सहयोगियों में से थे l उन्नीस सौ आठ में बंगाल के गवर्नर फ्रेजर की स्पेशल ट्रेन पर बम फेंकने और मुजफ्फरपुर के जिलाधीश किंग्स फोर्ट की हत्या की कार्यवाही में खुदीराम बोस और अन्य सहयोगियों के साथ विजय सिंह पथिक भी सम्मिलित थे l 1912 में दिल्ली में वायसराय के जुलूस पर जो बम फेंका गया था उस गतिविधि में भी विजय सिंह पथिक सम्मिलित थे l रासबिहारी बोस ने 21 फरवरी 1915 को पूरे देश में एक साथ सशस्त्र क्रांति के द्वारा अंग्रेज सरकार को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई थी l इस गतिविधि में विजय सिंह पथिक को राजस्थान में क्रांति की जिम्मेदारी सौंपी गई थी l दुर्भाग्य से यह योजना विफल हुई और बहुत से क्रांतिकारी पकड़े गए l गिरफ्तार होने वालों में विजय सिंह पथिक भी थे l कुछ दिन कैद में रहने के बाद यह वेश बदलकर पुलिस को चकमा देकर वहां से फरार हो गए l इसके बाद इन्होंने अपना नाम और वेश बदल लिया और सशस्त्र क्रांति के बजाय गांधीवादी सत्याग्रह का रास्ता अपनाया l पथिक जी के नेतृत्व में चला बिजोलिया का किसान सत्याग्रह विश्व प्रसिद्ध है l अंग्रेज भारत में यह अकेला ऐसा आंदोलन था जिसके आगे अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा और किसानों से समझौता करना पड़ा l किसान आंदोलन के सिलसिले में ही विजय सिंह पथिक गिरफ्तार होकर  लगभग 4 वर्ष जेल में रहे थे l जेल में रहने के दौरान उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी जिनमें प्रहलाद  विजय और वेदों में विश्व इतिहास काफी प्रसिद्ध हैं l पथिक जी ने कुल 32 पुस्तक लिखी l जन आंदोलनों के दौरान जन जागरूकता के लिए पथिक जी पत्रकारिता भी करते थे l उनके कई लेख लंदन के अखबारों तक में छपे l प्रसिद्ध पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के संपादन में कानपुर से निकलने वाले पत्र प्रताप में विजय सिंह पथिक के लेख लगातार छपते थे l उस समय विजय सिंह पथिक और गणेश शंकर विद्यार्थी की मित्रता प्रसिद्ध थी l देश की आजादी के लिए कांग्रेस की गतिविधियों में भी पथिक जी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया l कांग्रेस की नीति थी कि वह केवल अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन चलाएंगे और देशी रियासतों और राजाओं को नहीं छेड़ेंगे l पथिक जी का स्पष्ट मत था की देशी राजाओं और रियासतों को हटाए बिना मिली आजादी आधी अधूरी रहेगी l पथिक जी के प्रयास से ही कांग्रेस ने 1930 में देसी रियासतों से प्रजा की मुक्ति को भी अपने एजेंडा में शामिल किया l यह पथिक जी की बड़ी उपलब्धि थी l बड़े आश्चर्य और दुख का विषय है कि विजय सिंह पथिक जैसे महान व्यक्तित्व को आज तक भी वह सम्मान नहीं मिल पाया है जिसके वह हकदार हैं l कुछ प्रबुद्ध नागरिकों और संस्थाओं के द्वारा विगत वर्षों में पथिक जी के नाम से जगह-जगह अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं l उनके साहित्य को भी प्रकाशित किया गया है l कुछ जगहों पर उनकी प्रतिमा स्थापित की गई हैं और उनके नाम से संस्थाओं के नामकरण किए गए हैं l इस कड़ी में ग्रेटर नोएडा स्थित विजय सिंह पथिक खेल परिसर और कैराना स्थित विजय सिंह पथिक राजकीय महाविद्यालय विशेष उल्लेखनीय हैं l उनके पैतृक गांव गुठावली अख्तियारपुर में भी सरकार के सहयोग से उनकी प्रतिमा की स्थापना की गई और एक पुस्तकालय खोला गया है l पथिक जी ने इस देश के लिए जो बलिदान दिए उनके सामने यह प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा जैसे हैं l पथिक जी को उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप सम्मान की अभी भी प्रतीक्षा है l मुझे पूरा विश्वास है कि आप जैसे प्रबुद्ध और जागरूक नागरिकों के सहयोग से यह प्रतीक्षा जरूर समाप्त होगी और पथिक जी को देश में सम्मान मिलेगा l आज 27 फरवरी को पथिक जी की जयंती के अवसर पर उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि l
लेखक राजकुमार भाटी 

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