ओम रूपी साधन ही हम सबके जीवन में आनंद का स्रोत है।

फ्यूचर लाइन टाईम्स



 


एतदालम्बनं श्रेष्ठमेदालम्बनं परम्।


एतदालम्बनं ज्ञात्वा ब्रह्मलोके महीयते।।


( कठोपनिषद् २/१७ )


पदार्थ - एतत् - यह ( ओ३म् की उपासना )


अलम्बनम् - साधन


श्रेष्ठम् - सबसे उत्तम


एतत् - यही ( ओ३म् की उपासना )


आलम्बनं - साधन


परम् - सबसे उपयुक्त


एतत् - इस 


आलम्बनं - साधन को


ज्ञात्वा - जानकर, (मार्ग पर चल कर)


ब्रह्मलोके - ब्रह्मलोक को ( मोक्ष को)


महीयते - प्राप्त करता है


 


भावार्थ - इस संसार में अपने सांसारिक कार्यों के लिए मनुष्य भिन्न-भिन्न प्रकार के उपायों को खोजता है। भिन्न-भिन्न साधनों का उपयोग करता है। फिर भी अनेकों बार असफलता ही हाथ लगती है। कई बार साधन धोखा दे जाते हैं। लक्ष्य तक नहीं पहुंचा पाते, बीच में ही धोखा दे जाते हैं। मित्र धोखा दे जाता है, सम्बन्धी धोखा दे जाता है, यहां तक कि भाई बंधु भी धोखा दे जाते हैं। इसलिए लक्ष्य की प्राप्ति ना होने पर मनुष्य को दुख प्राप्त होता है। पीड़ा होती है।


किन्तु जो इस मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य है अर्थात मोक्ष की प्राप्ति, आनंद की प्राप्ति, ईश्वर की प्राप्ति है, उसकी प्राप्ति के लिए यह ओ३म् की उपासना ही सर्वोत्तम उपाय है। यही सबसे उत्कृष्ट साधन है। इस लक्ष्य पर जब मनुष्य श्रद्धा पूर्वक, निष्ठा पूर्वक, धैर्य पूर्वक बढ़ता रहता है, और इस साधन, इस अवलम्बन, इस सहारे को धैर्य पूर्वक, श्रद्धा पूर्वक, पकड़े रखता है, तो अपने लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यह साधन मनुष्य को कभी धोखा नहीं दे सकता। यह उसका कभी मार्ग भ्रमित नहीं कर सकता। क्योंकि संसार का यही एकमात्र सर्वोत्तम साधन मनुष्य के पास है, जिससे वह अपने मुख्य लक्ष्य, ईश्वर की प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति, आनंद की प्राप्ति कर सकता है। जब वह इस ओ३म् की उपासना के द्वारा परमपिता परमात्मा का साक्षात्कार समाधि में जाकर करता है, तो वह आनन्द से विभोर हो जाता है। फिर मृत्यु आदि दुखों से निवृत्ति मिल जाती है, और सदा, सर्वदा आनन्द बना रहता है। यह ओम रूपी साधन ही हम सबके जीवन में आनंद का स्रोत है। इसी साधन को हम धैर्य पूर्वक, श्रद्धा पूर्वक पकड़े रहे तो हम सब आनंदित हो सकते हैं।


 


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