वेदों के कार्य-कारण सिद्धांत़ की कसौटी पर विज्ञान जगत थ्योरी ?

फ्यूचर लाइन टाईम्स


श्रष्टि निर्माण की विज्ञान बिग बेंग थ्योरी कितनी अपूर्ण है।
आधुनिक विज्ञान जगत की श्रष्टि निर्माण प्रक्रिया में तापमान को मुख्य घटक माना गया है। विश्व भर ने ऋग्वेद की ऋचाओं को ही सर्वाधिक प्राचीन साहित्य मान्य किया है। इसकी पहली ऋचा का प्रथम शब्द "अग्नि" से आरम्भ होता है। यह महज एक संयोग नही कहा जा सकता है? इन ऋचाओं के सभी शब्द अपने में व्यापक अर्थ लिए हुए है। वस्तुतः वेदों की यह वैश्विनर अग्नि ही जगत में विभिन्न रूपों जैसे ऊर्जा, गति, शक्ति, प्रकाश, विस्तार और क्रिया तथा परिवर्तनों के मूल में प्रकट होती दिखाई देती है। सनातन वैदिक धर्म के सिद्धांत सार्वभौमिक,सार्वकालिक होने के साथ विज्ञान,न्याय सम्मत भी है। श्रष्टि निर्माण प्रक्रिया में तीन अनादि तीन पदार्थ ईश्वर,आत्मा तथा कारण रुप प्रक्रति को सदा रहने वाला माना गया है। आधुनिक विज्ञान की जिस बिग बेंग थ्योरी में गार्ड पार्टीकल से निर्मित पिंड में हुए महाविस्फोट से ब्रह्मांड के उत्पन्न होने की अवधारणा मान्य की गई है इसमें गार्ड पार्टीकल की उत्पत्ति कैसे हुई? यह अनुत्तरित प्रश्न बना रहता है,जबकि वैदिक थ्योरी में निराकार, सर्वव्यापक ईश्वर की सामर्थ्य से अनादि कारण रुप प्रक्रति का रूपांतरण शनै-शनै स्थूल रूप श्रष्टि में होना माना जाता है। वेदों के कार्य-कारण सिद्धांत की कसौटी पर ब्रह्मांण की घटनाओं के कारणों को जाना जा सकता है। आधुनिक थ्योरी में अकारण गार्ड पार्टीकल उत्पत्ति को वेदों के ही अभाव से भाव की सिद्धि नही होने के सिद्धांत की कसौटी  पर पूर्णतः नकारा गया है।  चैतन्य प्राणियों की चेष्ठाओं, कार्यों में हमारे मष्तिष्क के भाव, विचार ही कर्मों के आधार माने गए है।आधुनिक थ्योरी इस कसौटी पर अपूर्ण सिद्ध होती है।
श्रष्टि निर्माण के वैदिक सिद्धांत में निराकार,सर्वशक्तिमान ईश्वर की सामर्थ्य से अव्यक्त (प्रक्रति) का स्थूल श्रष्टि रूपांतरण किस तरह होता है? यह समझने के लिए भारत के गांवों में प्रचलित निमोनिया उपचार की  प्रचलित पद्धति को वैदिक कार्य-कारण सिद्धांत की कसौटी पर समझना होगा। इसमें ताप/उष्मा का भाव ही शीत प्रक्रति जनित रोगों के निदान में स्पष्टतः दिखाई देता है।


आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का यह मानना है, की कोरोना संक्रमित मरीज और निमोनिया रोगी के लक्षणों में काफी साम्य है। हां निमोनिया  में केवल एक फेफडे़ में संक्रमण होता है जबकि कोरोना संक्रमण के समय दोनों फेफड़ों में यह दिखाई देता है।
भारत के ग्राम्यांचलों में आज भी  रोशनी के लिए चिमनी का प्रयोग होता है,वहां बच्चों को अक्सर होने वाले निमोनिया रोग के त्वरित उपचार के लिए चिमनी के केरोसिन तेल की कुनकुने सरसों तेल के साथ मिलाकर चेस्ट पर हल्की मालिश की जाती है। 


क्यों है यह प्रक्रिया लाभकारी? चिमनी के जलने के दौरान सूत की बत्ती में जले हुए कैरोसिन की जगह लेने  बत्ती से तेल स्वतः ऊपर चढ़ता है लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान ताप या उष्मा का वह प्रभाव नीचे भरे कैरोसिन में आ जाता है।परिणाम स्वरूप  ताप का प्रभाव शीत प्रक्रति से उत्पन्न निमोनिया उपचार में लाभकारी परिणाम देता है और फेफड़ों में जमा कफ गर्मी पाते ही पिघलने लगता है।
कोरोना वायरस संक्रमण?
विश्वव्यापी महामारी कहे जा रहे कोरोना रोग संक्रमण के दौरान व्यक्ति के दोनों फेफडों में जमा म्यूकस कठोर होकर श्वास नली को सिकोड़ देता है,जिससे मरीज को श्वास लेने में रूकावट होती है और फेफडों में श्वास प्रक्रिया में बाधा होती है जिससे आक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति नही होने से मरीज की मौत तक हो जाती है। वेदों की श्रष्टि निर्माण प्रक्रिया में कार्य- कारण सिद्धांत की कसौटी  पर प्रक्रति से श्रष्टि में  रूपांतरण को समझा जा सकता है।


Post a Comment

0 Comments