हर घर वृद्धाश्रम,हर घर अनाथालय : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


समाज की सूक्ष्म इकाई परिवार में अनेक विशेषताओं के दर्शन होते हैं। घर कोई मकान नहीं होता, परिवार घर का निर्माण करता है। ऐसे ही हर घर में एक समय कुछ लोग वृद्धावस्था को प्राप्त होते हैं। जिस घर में वृद्ध रहते हों, क्या उसे वृद्धाश्रम नहीं कहा जा सकता।इसी प्रकार जिस घर में बच्चे आधे समय बगैर माता-पिता के रहते हों क्या उसे अनाथालय नहीं कहा जाना चाहिए। महानगरीय जीवन में घरों को वृद्धाश्रम बनने से बचाया जा रहा है। इसके लिए सरकारों द्वारा स्थापित अथवा सामाजिक संस्थाओं द्वारा संचालित घोषित वृद्धाश्रमों की शरण ली जा रही है। खर्च उठाकर या दान से चलने वाले वृद्धाश्रमों में बूढ़े मां-बाप, दादा-दादी के लिए स्थान सुरक्षित कराये जाते हैं। वृद्धाश्रम का प्रबंध हुआ तो अनाथालय की समस्या खड़ी हो गई। अपने जिगर के टुकड़ों को खुद से दूर कौन करना चाहता है। एक सज्जन मिले। अपने आठ वर्ष के बेटे को कोई छ: सौ किलोमीटर दूर किसी विद्यालय के छात्रावास में छोड़ कर आये थे। बातचीत में अपने इस निर्णय पर उन्होंने गर्व जताया। मैंने कुरेदा,-क्या उसके बगैर आपको चैन मिलता है?कुतर्कों से खुद का बचाव करने लगे। और कुरेदा तो रो दिए। आधुनिक जीवनशैली में जीने के लिए धन कमाने की होड़ ने बूढ़ों से उनके सहारे छीन लिये हैं, बच्चों को अनाथ बना दिया है।हर घर कभी वृद्धाश्रम भी था तो खुशियों का आना-जाना लगा रहता था। अब हर घर अनाथालय है, वहां बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करने को धन है परंतु हर रोज मां-बाप का साया सिर से उठता है तो कम से कम 12 घंटे बाद ही फिर से नसीब होता है। नोएडा प्राधिकरण ने सेक्टर 62 में एक चार मंजिला इमारत का निर्माण किया है। इसमें वृद्धाश्रम और अनाथालय एक साथ चलेंगे। संचालन के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं की तलाश की जा रही है। शर्त है कि संस्था को वृद्धाश्रम और अनाथालय चलाने का अनुभव होना चाहिए। मैं हैरान हूं। यह अनुभव तो अमूमन सभी को है। क्या वृद्धजनों की देखभाल अनोखी चीज है और क्या बच्चों को संभालना किसी विश्वविद्यालय में सिखाया जा सकता है। दोनों ही मामलों में सेवाभाव की महत्ता है।न समाज यह समझ रहा है और न प्राधिकरण।


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