लेखक:-आर्य सागर, ग्रेटर नोएडा
साधारण जन के समान ही महान व्यक्ति की देह भी की नाशवान होती है लेकिन उसकी विचारधारा अमृत्य शाश्वत होती हैं। प्राचीन काल से ही भारत भूमि में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया वहीं हम 19 वी व 20वीं शताब्दी की बात करें तो महर्षि दयानंद, अरविंद घोष, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह ,वीर विजय सिंह पथिक जैसे क्रांतिकारी विचारको महापुरुषों भारत में जन्म लिया। आप सभी इनके पावन व्यक्तित्व से परिचित हैं लेकिन इस तथ्य से परिचित नहीं है इन महान विचारोंको के विचारों की हत्या का प्रयास प्रायः उनके तथाकथित अनुयायी ही करते हैं।
ऐसे ही मरणोपरांत पीड़ित एक विचारक है वीर विजय सिंह पथिक जिनके साहस पुरुषार्थ के कारण जीते जी अंग्रेज और सामंतवादी शक्तियों मिलकर उनके शरीर व विचारधारा को कोई नष्ट नहीं कर पायी लेकिन आज उनके तथाकथित भक्त जिनमें उत्तर प्रदेश की एक क्षेत्रीय पार्टी नमाजवादी पार्टी के प्रवक्ता नमाजकुमार भी शामिल है उनके विचारों का गला घोट रहे हैं । अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए एक राष्ट्रवादी लोकतंत्र में निष्ठा रखने वाले सामाजिक समन्वयवादी विशुद्ध धार्मिक गुर्जर समाज को बलि चढ़ाने का कुत्सित प्रयास कर रहे । अपने आप को पथिक जी का वैचारिक वंशज मानने वाले यह जनाब उनके आदर्शों का कैसे गला घोट रहे हैं यह में क्यों कह रहा हूं आये इसे समझते हैं। विजय सिंह पथिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश बुलंदशहर के ग्राम गुठावली में एक क्रांतिकारी गुर्जर परिवार में जन्मे थे। राजस्थान में राजनीतिक आर्थिक सामाजिक चेतना जगाने वाले एक नवजागरण के पुरोधा जिन्हें राजस्थान केसरी की पदवी मिली।
पथिक जी महान क्रांतिकारी पत्रकार लेखक साहित्यकार थे ।जिनकी कर्म भूमि राजस्थान रही। उनके बिजौलिया आंदोलन से किसानों में नई राजनीतिक चेतना जगी इस ऐतिहासिक आंदोलन में किसानों को उनका अधिकार मिला।उनके निधन के उपरांत उनकी धर्मपत्नी माता जानकी देवी पथिक जी ने उनके महान चिंतन पर कुछ प्रकाश एक श्रद्धांजलि लेख में डाला।
वह लिखती है--" पथिक जी राजस्थान में जहां भी जाते उसी समाज की रीति-नीति परंपराओं में घुल मिल जाते ।जब वह राजस्थान के जाटों में जाते तो जाट समझते की यह जाट है राजपूतों में जाते तो राजपूत समझते यह राजपूत है मारवाड़ी सेठो में जाते तो वह समझते यह कोई मारवाड़ी बनिया है उनके साथी ब्राह्मण साहित्यकार पत्रकार तो ब्राह्मण ही मानते थे बनारसी दास चतुर्वेदी जैसे नाम जिसमें शामिल है पथिक के जीते जी उनकी कोई जाति को नहीं खोज पाया। वही मेवाड़ की भील जनजाति तो उन्हें सर आंखों पर बिठाती थी। महाराणा प्रताप के बाद सर्वाधिक आदर उन्होंने विजय सिंह पथिक को ही दिया"। पथिक जी समाज में जातीय संघर्ष नहीं चाहते थे वह केवल आर्थिक असमानता पर आधारित कर नीति थी भेदभाव को दूर करना चाहते थे इसके लिए उन्होंने स्त्री शिक्षा जरूरतमंदों के लिए उन्होंने आंदोलन चलाया ।राजस्थान की सभी जातियों ने उनका सहयोग किया राजस्थान में आज भी अनेक लोकगीत पथिक जी को समर्पित है।
वही अपने को उनका वैचारिक उत्तराधिकारी घोषित करने वाले पग पग पर यह घोषणा करने वाले मैंने पथिक जी के नाम से इस संस्था का नामकरण कराया उस संस्था का नामकरण कराया उनके तथाकथित मानस पुत्र नमाजकुमार यदि सुबह से लेकर शाम तक जातीय उन्माद के विषैले बीज का वपन ना करें तो उन्हें भोजन भी हजम नहीं होता। पथिक जी ने चित्तौड़गढ़ आदि परिक्षेत्र के किसानों में जहां पीड़ित मानव खोजा तो वही यह जनाब किसी घटना के घटित होने पर पहले जाति खोजते हैं।
माता जानकी ने दूसरा किस्सा पथिक जी के बारे में यह बताया जो उनकी अर्थ की शुचिता को लेकर था पथिक जी को उनके संगठन राजस्थान सेवा संघ की ओर से में ₹10 मासिक मिलता था निर्वाह के लिए यह नियम भी उन्होंने खुद बनाया था। पथिक जी इतने मितव्ययी थे वह ₹5 वापस लौटा देते थे अन्य जरूरतमंद छात्रों की छात्रवृत्ति व अपने अखबार साहित्यिक प्रचार के लिए दान कर देते थे।
वही इन जनाब पर 2017 व 22 के विधानसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी सामाजिक भावनाओं को भुनाकर इनके द्वारा उगाही गई लाखों से करोड़ों अनुमानित चंदे की रकम का हिसाब ना देने का भी आरोप लगा।एक पार्टी पदाधिकारी ने जिला स्तरीय मीटिंग में उस बिंदु को उठाया तो उसे निलंबित करा दिया गया। इनके गैर राजनीतिक जीवन में क्या-क्या आरोप इन पर लगे उन्हें आप ही जाने में यहां इस लेख के विस्तार भय से उन सभी प्रसंगो को स्थान नहीं दे पाऊंगा।
उससे पूर्व उनके गैर राजनीतिक मातृ संगठन ...मोर्चा आदि में उनके साथ कार्य करने वाले लोगों की इनके बारे में क्या राय है वह भी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध होती रहती है, वह भी ठीक नहीं है।
विषय पर लौटते हैं।
पथिक जी के धार्मिक विश्वासों को लेकर उनकी पत्नी ने बताया कि पथिक जी एक आस्थावान हिंदू थे ।वह नवरात्रों में 9 दिन उपवास रखते थे ।साथ ही 9 दिन सायं कालीन यज्ञ भी करते थे केवल साबूदाने की खीर खाते थे ।वही यह नमाजकुमार जी अपने आप को नास्तिक ,हिंदू धर्म के भगवानों को झूठा राम को स्त्री का उत्पीडक, कपोल कल्पित पात्र तथाकथित दलित शम्भुक का हत्यारा राम को बताते हैं ।वही अरब में जन्मे एक तथाकथित शांतिप्रिय पंथ के संस्थापक को यह मानवता का पुजारी बताते हैं जिनके जीवन में डेढ़ लाख लोगों को मौत के घाट उतारा गया जो एक इतिहास प्रसिद्ध तथ्य है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम इनकी नजर में हत्यारे अपने निज कल्पना प्रसूत विचारों से यह जनाब हिंदू धर्म को अन्यायकारी अवैज्ञानिक अतार्किक बताते हैं जो हिंसा को बढ़ावा देता है। नमाजकुमार जी घोषणा करते हैं वह मंदिर नहीं जाते ना ही ईश्वर में विश्वास करते । ईश्वर में विश्वास करना ना करना इनका निज विश्वास हो सकता है लेकिन ईश्वर में ना विश्वास करते हुए भी हिंदू धर्म के महापुरुषों भगवानों के बारे में समय-समय पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना कहां तक उचित है ।पथिक जी ने भी धार्मिक आडंबर का विरोध किया लेकिन उन्होंने किसी की भावनाओं को तथ्यहीन तरीके से आहत नहीं किया पथिक जी जैसे महामानव ने अपने महान धर्म का सदैव आदर किया क्योंकि वह सच्चे अर्थों में सुधारक थे सुधारक केवल धर्म में आई विकृति पर ही प्रहार करता है ना की मूल धर्म को निशाना बनाता है जैसा अक्सर यह जनाब करते हैं ।भीमटो और मीमटो व अपने राजनीतिक आकाओं चाटुकार चमचों को खुश करने के लिए । यह नमाजकुमार जी जब तक हिंदू धर्म के खिलाफ जहर न ऊगले और जिस गुर्जर समाज में इन्होंने जन्म लिया वह समाज बढ़ चढ़कर विद्वानों का पुजारी ,दानवीर गौ व वेद सनातनी धर्म भक्त समाज रहा है ,आज भी है। यह जनाब उस वीर राष्ट्रभक्त सनातन प्रेमी समाज के तथाकथित स्वयंघोषित ठेकेदार बनकर अपने संकीर्ण राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए प्रयोग करते हैं। जिसमें इनके रोल मॉडल अलीशेख भी माहिर है वही अलीशेख जो कुख्यात माफियाओं के मरने पर शोक मनाते हैं क्योंकि वह तथाकथित शांतिप्रिय समुदाय से आते थे। हजारों विधवाएं पूर्वांचल की उन्हें नहीं दिखती जिनका सुहाग उन जिहादी गुंडे माफियाओं ने छीन लिया । नमाज कुमार जैसे लोग आत्म प्रचार के लिए वीर गुर्जर समाज को बदनाम कर रहे हैं और यह भोला भाला समाज कब तक मौन धारण करेगा ,इस विषय पर।
एक तथाकथित पंथ संप्रदाय जो कभी धर्म नहीं रहा उसे धर्म बता कर यह उसको को शांतिप्रिय शासक सुधारक घोषित कर रहे हैं ।दुनिया में जिस सम्प्रदाय के कारण खून की नदियां बहती जो तलवार के बल पर फला-फुला ना की तर्क के बल पर और ना ही मानवता के बल पर। जिसमें आज भी अक्ल की दखल को मनाई है। फारस मिश्र जैसी सभ्यताओं को निगल गया यूरोप के धर्म युद्धों के लिए जिम्मेदार रहा जिसमें लाखों निर्दोष लोग मारे गए लाखों स्त्रियों की इज्जत को लूट गया उनको नोट-नोच कर जिहादी भेड़िये खा गए चाहे इस स्पेन हो या भारत इस तथाकथित शांतिप्रिय मजहब का यही मूल चरित्र रहा।पूरा दक्षिण पश्चिम एशिया मध्य पुर्व पश्चिमी यूरोप जिसके कारण अशांत रहा आज भी अशांत है लेकिन जिसका बेड़ा भारत में ही गंगा में आकर डूबा उस पंथ के संस्थापक व पंथ को यह राम व हिन्दू धर्म से भी महान बता रहे हैं। प्रत्यक्ष तौर पर राम के नाम साथ उनका महिमा मंडन कर यह परोक्ष निंदा ही होती है जब किसी महापुरुष की जब उनके विषय में सीधे शब्द न कहकर उनका नाम के पश्चात किसी अन्य व्यक्ति का नाम लेकर उससे महान बता देते हैं । नमाजकुमार जैसे लोगों ने विश्व इतिहास को अभी पढ़ा नहीं है, ऐसे लोग कूप मंडूक होते हैं एक दो पेरियार जैसे लोगो की किताब को पढ़कर नवबौद्धों द्वारा प्रचारित सोशल मीडिया की रील को देखकर यह अपने आप को बहुत बड़ा विचारक मान लेते हैं ।सोशल मीडिया के बुद्धि से पैदल लोग इन्हें पदवी दे देकर इन्हें बथुआ के पेड़ पर चढ़ाते रहते हैं और फिर इन जैसे लोगों के मन में जो आता है अनाप शनाप यह हिंदू धर्म व उसकी मान्यताओं के बारे में बक देते हैं। यह भी इस हिंदू धर्म की महानता ही है जो आलोचनाओं का भी आदर करता है लेकिन यह तो आलोचना भी नहीं है यह तो नीचता की पराकाष्ठा है संकीर्ण एकांगी दृष्टिकोण है । नमाज कुमार जैसे लोग सात जन्मों में भी इसे समझ नहीं पाएंगे। महान हिंदू धर्म के रहते रहते यहा नास्तिक बौद्ध जैन मत भी फला फूला। वही बौद्ध मत पश्चिम एशिया में नष्ट हो गया इस्लाम के उदय होते ही।यह ऐतिहासिक तथ्य है। जिसे ना मैं बदल सकता हूं ना आप।
विधान परिषद राज्यसभा जाने के मुंगेरी लाल के हसीन सपने यह पाले हुए हैं क्योंकि स्थानीय उनके गृह जनपद गौतम बुद्ध नगर की विवेकशील तार्किक जनता ने इन्हें स्वीकार नहीं किया राष्ट्रभक्त गुर्जर समाज भी इसमें शामिल था ,तो अस्तु अब यह अपने नमाजवादी आकाओ को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है । मान्यवर भले ही ऐतिहासिक गुर्जर कुल के गौरव का ध्यान न रखे अपने इस महान भाटी वंश का तो ख्याल रखते वह भाटी वंश जिसके मूल शासको सम्राट गज, शालीवाहन खुद महाराजा भाटी आदि ने म्लेच्छ इस्लामिक जिहादीयो आक्रांताओं ख़लीफाओ को जो निर्दोष मानवो का अरब के रेगिस्तान से लेकर सिंध के रेगिस्तान तक खून बह रहे थे उनको भाटी वंश के इन उल्लेखित प्रतापी शाशको न पंजाब जैसलमेर खुद अफगानिस्तान के गजनेर में धूल चटाई ।साथ ही जिस भट् धातु से भाटी शब्द बना है वह योद्धा अर्थ में प्रयोग होती है भटाभट शब्द भी इसी से बना है अपने शौर्य बलिदान से अपने भाटी नाम को सार्थक किया। अब समय आ गया है इन जनाब से इस भाटी उपनाम को नैतिक तौर पर वापस ले लिया जाए यह काम वीर गुर्जर समाज ही कर सकता है अपने स्वार्थ में नमाजकुमार पूरी तरह अंधे हो गए हैं।
अपनी तथाकथित चौपालों में यह पथिक जी की फोटो पथिक जी के नाम का दुष्प्रचार कुप्रयोग कर रहे हैं नैतिक तौर पर इन्हें अब ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। भगत सिंह, विजय सिंह पथिक , महान समाजवादी राम मनोहर लोहिया जैसे विचारको के विचारों की हत्या ऐसे ही लोग करते हैं और समाज उनके विचारों की हत्या करने वाले हत्यारों को समाज सुधारक प्रबुद्ध नागरिक विचारक अद्वितीय अपूर्व वक्ता ना जाने क्या-क्या उपाधि उन्हें दे देता है लेकिन ऐसे लोग हुए कूप मेंढक होते हैं जो 2,4 बातें रट कर सोशल मीडिया से या नास्तिक वामपंथी लेखकों की उठाकर उन्हें प्रचारित करते हैं और देश को बांटने वाला बहुत बड़ा शत्रु वर्ग उनके साथ मिलकर अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देता है। नमाज कुमार जैसे लोग आत्मप्रशंसा आत्मप्रचार के रोग से ग्रसित होते हैं वह मानते हैं दुनिया में डेढ़ अकल आधि में सारी दुनिया एक में अकेला, शायद यह उसे शांति प्रिय समुदाय के संसर्ग के कारण उनमें यह दोष आया है जो यह मानता है उनकी खुदाई पुस्तक में ही सारा विज्ञान है उससे पहले दुनिया थी ही नहीं जो उस आसमानी किताब में लिखा है वही सब कुछ सत्य है पृथ्वी चपटी है ऊपर दूध की नदियां बहती है जन्नत में 72 बुरे हुरे होती है आदि आदि।
सर्व शक्तिमान परमेश्वर ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे ।
लेखक:-आर्य सागर तिलपता ग्रेटर नोएडा
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