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शहीद की पत्नी को धरने पर बैठने की नौबत क्यों? प्रशासन की घोर लापरवाही!

मनोज तोमर ब्यूरो चीफ राष्ट्रीय दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतमबुद्ध नगर।

भारतीय सेना के वीर लांस नायक सुरेश सिंह भाटी ने वर्ष 2006 में जम्मू-कश्मीर के बारामुला सेक्टर में आतंकियों से लोहा लेते हुए अपने प्राण देश पर न्यौछावर कर दिए थे। गोली लगने के बाद श्रीनगर के सैन्य अस्पताल में उपचार के दौरान उनकी शहादत हुई। उस समय पूरे क्षेत्र व प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ।

शहीद की वीरांगना सरोज देवी ने बताया कि अंतिम संस्कार के समय शासन-प्रशासन और नेताओं ने परिवार को आर्थिक मदद, आवासीय व कृषि भूमि, शहीद स्थल का सौंदर्यीकरण और एक सदस्य को नौकरी देने का आश्वासन दिया था। यहाँ तक कि गाँव के बड़े गोल चक्कर का नामकरण शहीद के नाम पर करने और प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा भी हुई थी। परंतु वर्षों बाद भी कोई वादा पूरा नहीं हुआ।

सरोज देवी का कहना है कि “प्राधिकरण द्वारा अपेक्षा करना उचित नहीं, शहीद की पत्नी को धरने पर बैठने की नौबत नहीं आनी चाहिए थी। यह प्राधिकरण की घोर लापरवाही है।” पति की शहादत के बाद परिवार पहले ही कठिनाइयों से गुजर रहा था, ऊपर से आश्वासन पूरे न होने से हालात और खराब हो गए।

अब 05 अक्तूबर 2025 को ग्राम डबरा में शहीद स्थल के समीप धरना देने की घोषणा की गई है। सरोज देवी ने साफ कहा कि जब तक शासन-प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाता, तब तक न्याय की लड़ाई जारी रहेगी।

शहीद परिवार के इस दर्द ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीरों के परिजनों को सम्मान और अधिकार दिलाना इतना कठिन है?

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