रिपोर्ट: रविंद्र आर्य / लेखक: टाइगर राणा, पूर्व गोरखा सैनिक, भारतीय सेना
काठमांडू/दिल्ली। नेपाल की राजधानी काठमांडू आज हिंसा, आक्रोश और जनविद्रोह का केंद्र बन चुकी है। हाल ही में हुए प्रदर्शनों में 19 मासूम बच्चे और युवा गोलीबारी में मारे गए। इस क्रूर घटना ने ओली सरकार और नेपाली सुरक्षा बलों के खिलाफ जनता के आक्रोश को और प्रचंड कर दिया है।
गोरखा सैनिक टाइगर राणा का बयान
पूर्व गोरखा रेजिमेंट सैनिक और लेखक टाइगर राणा ने कहा: “ओली सरकार भ्रष्टाचार और चीन की कठपुतली बन चुकी है। मासूम हिंदू बच्चों और आम जनता को खुलेआम गोलियों से भून दिया जा रहा है, यहां तक कि एम्बुलेंस से भी छद्म वेश में गोलियां चलाई गईं। यह लोकतंत्र नहीं बल्कि दमनकारी शासन है। नेपाल पहले से ही एक हिंदू राष्ट्र था और अब राजशाही की मांग और तेज हो रही है। भारत में रहते हुए भी हम इस साम्यवादी, चीन-परस्त सरकार का विरोध करेंगे और इसे उखाड़ फेंकेंगे। ओली ने जनता को लिपुलेख और कालापानी जैसे मुद्दों पर छल कर सत्ता पाई थी, लेकिन आज वह निर्दोषों के खून से अपनी कुर्सी से चिपका हुआ है।”
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला
ओली सरकार ने हाल ही में चीन के दबाव में आकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और मैसेंजर जैसे पश्चिमी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि चीनी ऐप्स जैसे टिकटॉक को खुली छूट दी गई है।
युवा पीढ़ी (जेन-एक्स) ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है। जनता का आरोप है कि सरकार चीनी हितों को साधने और विरोध की आवाज को दबाने के लिए सोशल मीडिया पर अंकुश लगा रही है।
जनआंदोलन की विविध मांगें
यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई गंभीर मुद्दे शामिल हैं:
• भ्रष्टाचार विरोधी जनविद्रोह
• नेपाल को पुनः हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग
• राजशाही की बहाली की मांग
• युवाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए संघर्ष
कलाकार और बुद्धिजीवी जनता के साथ
नेपाल की फिल्म इंडस्ट्री और सांस्कृतिक जगत के प्रमुख लोग खुलकर जनता के साथ खड़े हो गए हैं।
प्रसिद्ध अभिनेता राजेश हमाल ने आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा:
“जनता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। नेपाल की आत्मा स्वतंत्रता और न्याय के साथ खड़ी है।”
अंतरराष्ट्रीय निंदा
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने 19 बच्चों और युवाओं की हत्या की कड़ी निंदा की है और ओली सरकार को तत्काल जवाबदेह ठहराने की मांग की है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी नेपाल की छवि और मानवाधिकार स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
ओली सरकार पर बढ़ता दबाव
जनता का आक्रोश दिन-प्रतिदिन उग्र होता जा रहा है और ओली के इस्तीफे की मांग तेज हो रही है। सरकार पर झूठ फैलाने और सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर प्रोपेगेंडा चलाने का भी आरोप है। युवा कह रहे हैं कि अब उन्हें केवल स्वतंत्रता चाहिए — चाहे इसकी कीमत जान देकर ही क्यों न चुकानी पड़े।
नेपाल ऐतिहासिक मोड़ पर
आज नेपाल एक निर्णायक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। यह संघर्ष केवल सोशल मीडिया की स्वतंत्रता का नहीं है, बल्कि हिंदू राष्ट्र बनाम सेक्युलरिज्म, राजशाही बनाम गणतंत्र और स्वतंत्रता बनाम दमनकारी शासन की लड़ाई है।
19 मासूम युवाओं की हत्या ने इस आंदोलन को और भी प्रचंड बना दिया है और ओली सरकार का भविष्य अब पहले से कहीं ज्यादा अस्थिर और अनिश्चित हो चुका है।
ओली सरकार का अंत: जनता की जीत
• भारी हिंसा के बीच नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का इस्तीफ़ा...
• Gen-Z प्रदर्शन के बीच नेपाल के सभी मंत्रियों ने अपने आवास खाली कर दिए।
• प्रधानमंत्री ओली और कैबिनेट मंत्रियों को सेना अज्ञात स्थान पर ले गई।
• ओली सरकार ने अस्पताल की एम्बुलेंस में छिपकर स्कूल-कॉलेज के निहत्थे बच्चों के सीने और छाती पर अंधाधुंध गोलियां चलवाईं।
• सेना को सड़कों पर उतारने के बावजूद जनता पीछे नहीं हटी।
• अंततः जनता ने ओली को देश से खदेड़ दिया और कई मंत्रियों के घर जला दिए।
जनता की आख़िरकार जीत हुई।
लेखक: झापेन्द्र राणा (टाइगर)
ह्यूमन राइट एंड पीस फाउंडेशन (HURPEF) नेपाल
इंटरनेशनल चीफ काउंसिल
पूर्व गोरखा सैनिक, भारतीय सेना
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