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स्वदेशी और विदेशी नेता


ऋषि दयानन्द अपनें सत्यासत्य पर आधारित अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं कि विदेशी राजा चाहे कितना भी अच्छा हो ,  वह प्रजा से पिता के तुल्य भी प्यार क्यों न करता हो, लेकिन जो स्वदेशी राजा होता है वहीं उत्तम होता हैलिए स्वदेशी का अर्थ यह नहीं होता जैसे राहुल गांधी, सोनिया गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी,  जवाहरलाल नेहरु तथा जैसे संसद में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का विरोध करने वाले भारत के 232 सांसद। ऐसे लोग वेशभूषा, रंग रूप और बोलचाल में लगते तो स्वदेशी हैं लेकिन सत्ता प्राप्ति के लिए उनके मन मस्तिष्क में विदेशी गंदगी भरी होती है और उनका दिल हमेशा राष्ट्रद्रोही लोगों के हित में धड़कता रहता हैl उनके अनुयायी राष्ट्र हित को छोड़कर अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए उनके समर्थन में लगे रहते हैंl
ऊपर बताए गए नेता भी स्वदेशी दिखाई देते थे या दे रहे हैं लेकिन मन मस्तिष्क और दिल से वे विदेशी ही है। स्वदेशी नागरिक वह होता है जो अपने आर्यावर्त देश की सत्य सनातन वैदिक आर्य संस्कृति व सभ्यता की रक्षा व उन्नति के लिए तत्पर रहेl विदेशी वह  होता है जो  जयचंद की तरह राज करने के लिए पाकिस्तान, बांग्लादेश व म्यांमार जैसे विदेशों से रोहिंग्याऔं को बुलाकर उनके आधार कार्ड और मतदाता कार्ड बनाता हो। जो विदेशी फूहड़ लोगों की रक्षा व उन्नति करना चाहे और वक्फ बोर्ड,  मुस्लिम पर्सनल ला, अल्पसंख्यक मंत्रालय,  हज सब्सिडी, मजार निर्माण, मौलानाओ को 45000 रू महीना वेतन देने की व्यवस्था देश के लोगों की खून पसीने की कमाई से करेl इफ्तार पार्टी खाए लेकिन होली दिवाली भूल जाएl जो अपने देश से धन ले जाकर स्विस बैंकों में जमा कराए। जो अरबों खरबों के घोटाले करे और विदेश में धन जमा करवाता हो।
जिसको विदेशी मूल के मुस्लिम व ईसाई  समुदाय प्रगतिशील दिखाई दे और भारतीय संस्कृति पिछड़ी और हेय दिखाई देl आतंकवादियों को गोली मारने की खुली छूट दे, सेना और पुलिस के हाथ बाँधकर रखेl यही कारण है कि ऊपर बताए गए  नेता स्वदेशी दिखाई देते हुए भी स्वदेशी नही है। ऐसे लोगों की  पहचान करना सीखो। आज राजनीति का व्यवसायीकरण हो चुका है, सत्ता के लिए भ्रष्ट और महाभ्रष्ट के बीच गठजोड़ कर सरकारें बनाई व बचाई जा रही हैं।
लेखक:- आजाद सिंह 
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष 
अखिल भारतीय राजार्य सभा

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