प्रत्येक पार्टियों द्वारा प्रत्याशीयों के चयन पर लोकतंत्र व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह!

ओमवीर आर्य सम्पादक फ्यूचर लाइन टाईम्स।
विचार। भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है लोकतांत्रिक व्यवस्था अपने आप में एक अलौकिक व्यवस्था है। लोकतंत्र के माध्यम से कोई भी आम आदमी से माननीय हो सकता है। क्या इस खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक पार्टियां उचित कदम उठा रही है। लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव देश में लोकतंत्र के पर्व के रूप में मनाये जाते हैं। वर्तमान में पांच राज्यों के चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग के द्वारा हो चुकी है। आदर्श आचार संहिता लागू भी हो गई लेकिन प्रत्येक पार्टी विधानसभा चुनाव में उसी व्यक्ति पर अपना दांव खेलेगी जो आर्थिक रूप से संपन्न होगा। गरीब व्यक्ति को कोई भी पार्टी टिकट देने को तैयार नहीं है चाहे वह कितना ही बड़ा विद्वान सामाजिक कार्यकर्ता क्यों न हो देखा जाए तो देश में चुनाव आयोग ने ऐसी व्यवस्था की है कम से कम पूंजी में कोई भी आम आदमी चुनाव लड़ सके लेकिन आज की चकाचौंध में प्रत्येक पार्टी अमीर प्रत्याशी (सोने के घोड़े) पर ही दांव खेलना पसंद करती है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन चांद पर दाग की तरह स्पष्ट दर्शाता है और कहीं ना कहीं लोकतंत्र के लिए भी प्रश्नवाचक चिन्ह खड़े करता है । अब सोचना यह होगा किसी भी पार्टी का आम गरीब कार्यकर्ता को पार्टी क्यों नहीं अपना उम्मीदवार बनाती है? तब से भारत आजाद हुआ है तब से एक परिपाटी चली आ रही है। चुनावों के समय नामांकन में जो भी प्रत्याशी अपना नामांकन करता है नामांकन के शपथ पत्र में बताई गई अपनी संपत्ति के अनुसार अगले चुनावों में संपत्ति दोगुनी, चार गुनी कभी-कभी तो सौ गुनी तक हो जाती है कोई उनसे यह पूछने वाला नहीं पिछले नामांकन में शपथ पत्र के अनुसार आपकी यह संपत्ति थी तो वर्तमान में इतनी संपत्ति के स्वामी आप कैसे और कहां से हो गए।

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