गुर्जर जाति का गौरवमई राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास।

फ्यूचर लाइन टाईम्स।  गुर्जर सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार की फोटो

भारत।  ओमवीर आर्य सम्पादक, फ्यूचर लाइन टाईम्स हिन्दी समाचार के सौजन्य से वर्तमान परिदृश्य को देखकर गुर्जर सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार पर चर्चा करने का उचित समय है आने वाली पीढ़ी तथ्यात्मक जानकारी अन्य लोगों को दे एवं अपने गौरवमई इतिहास को जानने के उद्देश्य से गुर्जर जाति का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की पुस्तक के रूप में एक श्रृंखला प्रारंभ की गई है। जिसमें आप सभी पाठक गणों का स्नेह प्राप्त होने की अपार उम्मीद महसूस करते हैं। शुरुआत करते हैं गुर्जर सम्राट मिहिरभोज 835-890 ई .: तक का इतिहास काल रहा है।
“ अंगार हार उनका जिनकी सुन हाँक , समय रूक जाता है।
आदेश जिधर का देते हैं , इतिहास उधर झुक जाता है ।। 
आते जो युग - युग में , मिट्टि का चमत्कार दिखलाने को । 
ठोंकने पीठ भूमंडल की , नभ मंडल से टकराने को ।। "( रामधारी सिंह दिनकर ) उपर्युक्त काव्य पंक्तियाँ महान सम्राट मिहिरभोज पर पूर्णतः चरितार्थ होती हैं , क्योंकि उस महान योद्धा ने तत्कालीन विकट राजनैतिक परिदृश्य को अपने बाहुबल और अदम्य साहस के बल पर अपने अनुकूल बनाने में सफलता प्राप्त की थी । सम्राट रामभद्र की मृत्यु के पश्चात उसका परम यशस्वी पुत्र मिहिरभोज 835 ई . में कन्नौज साम्राज्य का अधिपति बना था । सम्राट कनिष्क ( कुषाण वंशीय ) के पश्चात सम्राट मिहिरभोज गुर्जर जाति का दूसरा सब से बड़ा सम्राट था , जिसने विश्व स्तर पर ख्याति अर्जित की । वह अपने समय का अद्वितीय सम्राट था । उसने अपने साहस तथा पराक्रम से गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को विस्तृत तथा वैभवपूर्ण बनाकर अपने वंश तथा जाति की प्रतिष्ठा को बढ़ाया था । अपने विजय अभियानों से उसने अपने नाम ' मिहिर ' ( सूर्य ) की सार्थकता सिद्ध कर दी थी । गुर्जरों के अधिकांश वंश सूर्यवंशी हैं , मिहिर भोज ने अपने आदि पुरुष इक्ष्वाकु के नाम को भी प्रतिष्ठित किया था । उसने पाल तथा राष्ट्रकूट नरेशों को खूब छकाया तथा अरब आक्रान्ताओं को सदैव भयभीत रखा जिससे वे उसके समय में कभी भी पूर्व की ओर बढ़ने का साहस न कर सके । मिहिर भोज की माता का नाम अप्पादेवी था । उसे उत्पन्न करने के लिए उसके पिता रामभद्र ने सूर्य भगवान की रहस्यमय व्रतों से उपासना करके सूर्यदेव को प्रसन्न किया था । इस तथ्य की पुष्टि मिहिरभोज के ग्वालियर प्रशस्ति के शिलालेख ( 875-876 ई . ) से हो जाती है । " जगद् - वितृष्णुः स विशुद्ध - सत्वः प्रजापतित्वं विनियोक्तुकामः । सुतं रहस्य - व्रत - सुप्रसन्नात् सूर्याद् अवापन मिहिराभिधानं ।। 2389 - अतः यह स्पष्ट है कि उसके पिता रामभद्र सूर्यदेव के उपासक थे और इसी कारण उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अपने इष्टदेव की उपासना की थी । बराह ताम्रपत्र लेख में इस आश्य का संकेत मिलता है कि रामभद्र के इष्टदेव सूर्यदेव थे । के.एम. मुन्शी ने भी इस तथ्य को निम्न शब्दों में स्वीकार किया है - " Rambhadra was suceeded on his death by Mihira Bhoja , who was destined to become not only the greatest of the imperial Gurjaras , but monarch Inferior to none in history , either in achievement or in character . His personal name was Mihira or Prabhas , for he was born to empress Appadevi as a result of the propitiatory rites performed in honour of the god Surya . Later on he came to be called Bhoja or Mihir Bhoja . हिंदी अनुवाद "रामभद्र को उनकी मृत्यु पर मिहिरा भोज द्वारा आगे बढ़ाया गया था, जो न केवल शाही गुर्जरों में सबसे महान बनने के लिए नियत थे, बल्कि इतिहास में किसी से भी कम नहीं थे, न तो उपलब्धि में या चरित्र में।  उनका व्यक्तिगत नाम मिहिरा या प्रभास था, क्योंकि उनका जन्म भगवान सूर्य के सम्मान में किए गए प्रायश्चित संस्कार के परिणामस्वरूप अप्पादेवी की महारानी के लिए हुआ था।  बाद में उन्हें भोज या मिहिर भोज कहा जाने लगा।  " 
ऐतिहासिक स्रोत : - मिहिरभोज के विषय में जानकारी उपलब्ध कराने वाले अनेक साक्ष्य प्राप्त होते हैं , परन्तु निम्नलिखित शिलालेख और साहित्यिक विवरण बहुत महत्वपूर्ण है : 1 . वराह लेख ( लखनऊ संग्रहालय लेख ) 2 . दौलतपुर अभिलेख ( जोधपुर संग्रहालय लेख ) 3 . देवगढ़ स्तम्भ शिलालेख ( झांसी ) 4 . ग्वालियर के दो अभिलेख, 5 अहर शिलालेख, 6. पहेवा अभिलेख, 7. सगर ताल प्रशस्ति ,8. देहली फ्रेगमेन्टरी इन्सक्रिप्शन,9. भावनगर फ्रेगमेन्टरी इन्सक्रिप्शन,10. ऊना ( जूनागढ़ ) लेख,11. चाटसू शिलालेख,12. राजतरंगिणी के विवरण,13. सुलेमान के विवरण।
मिहिर भोज के अन्य नाम तथा उपाधियाँ : - उस परम यशस्वी सम्राट के नाम इस प्रकार थे - मिहिर भोज , भोज प्रभास , भोज प्रथम प्रभास आदि वराह । उसकी उपाधियाँ इस प्रकार थीं महाराजाधिराज , परमभट्टारक परमेश्वर ! भोज और प्रभास नाम उपाधि सूचक ही थे । उसे कहीं - कहीं भोजराज कहकर भी संबोधित किया गया है । स्कन्दपुराण 7/2/6/141 ( 2 ) में उसे ' कान्यकुब्जे महादेशे राजा भोजे ' विश्रुतः ' कहकर संबोधित किया गया है । यह कथन उसकी कीर्ति का सूचक है ।
साहित्य साक्ष्य, 386. सत्यप्रकाश : भारत का इतिहास ( राजपूत काल ) पृ . 59 387. आनन्द स्वरूप मिश्र : कन्नौज का इतिहास पृ . 372, 388. Dr. B.N. Puri : The History of the Gurjara - Pratiharas . P.70,390 ) ,389. राधा चौधरी : भारतीय इतिहास । 390 ) 389. राधाकृष्ण चौधरी : प्राचीन भारतीय अभिलेख पृ . 118 390. K.M. Munshi : Glory that was Gurjaradesa P.96
#लेखक दयाराम वर्मा,
#प्रकाश गुर्जर साहित्य प्रकाशन समिति

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