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फ़ोन वो बला है जो बलवा करा सकती है !

ऐसी खुशी ले के आया फोन,
फ्यूचर लाइन टाईम्स, दिनांक अक्टूबर 14,2019,
जम्मू-कश्मीर में ७२ दिनों के बाद आज दोपहर ४० लाख मोबाइल फोन पुनर्जीवित हो गये।लोग जो करीब थे किन्तु दूर हो गये थे फिर करीब हो गये।ये सभी पोस्टपेड फोन हैं और अभी २० लाख प्रीपेड मोबाइल ग्राहकों को कुछ समय पुनः जुड़ने में लग सकता है। फोन अब बस,रेल मेट्रो और खाद्य पदार्थों के स्तर की लाईफ लाईन है। फोन नहीं तो आम ओ खास आदमी का क्या वजूद।सारी कायनात फोन में डूब गई है। याद कीजिए बीसवीं सदी के अंतिम वर्ष तक भारत में फोन तक कितने लोगों की पहुंच थी। कस्बों से लेकर महानगरों तक में फोन जरूरत से ज्यादा स्तर का प्रतीक (स्टेटस सिंबल) समझा जाता था। फोन लगना और फोन मिलना दोनों मुश्किल थे। फोन को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी निभाने वाले लाईनमैन साहब हमेशा तथा होली दीवाली को अनिवार्य रूप से पूजे जाते थे। फोन खराब होने पर उनकी राह ऐसे ही देखी जाती थी जैसे कभी डाकिया की। हालांकि तारमैन कभी कभी अच्छा समाचार लाने के बावजूद हमेशा यमदूत की दृष्टि से ही देखे जाते थे।२१ वीं सदी की शुरुआत से ही फोन वालों की (विभाग और उपभोक्ता) वह औकात नहीं रही। निजीकरण के लाभ का ऐसा दूसरा उदाहरण नहीं है।हर हाथ में हर हाल में फोन जैसी विराट शक्ति के उपकरण की परचून के सामान जैसी उपलब्धता मानव जीवन के आमूल चूल परिवर्तन के लिए काफी है। इससे नजदीकियां बढ़ीं तो दूरियां और तेजी से बढ़ीं। समय की इतनी बचत हो गई कि समय ही नहीं बचा।हर समय फोन हर हाल में फोन।न छूटता है,न छोड़ता है।ऐसे में ७२ दिन बेजान देह के साथ कैसे जिए होंगे जम्मू-कश्मीर के लोग। उनके धैर्य को सलाम।उनका धैर्य बना रहे आगे भी ऐसी कामना क्योंकि फोन वो बला है जो बलवा करा सकती है।


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