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करवाचौथ: एकतरफा प्रेम कथा !

फ्यूचर लाइन टाईम्स, दिनांक अक्टूबर 17,2019, संवाददाता मोहित खरवार, नोएडा: यह पति के प्रति अगाध श्रद्धा का पर्व है या स्त्रियों के घोर स्वार्थ का परंतु इतना तय है कि इसका दायित्व सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों का ही है। यदि अमिताभ अभिनीत बागबान की बात छोड़ दें तो इस व्रत को रखने वाले पतियों को दुनिया मारे तानों के यूं ही नहीं जीने देगी।तब स्त्रियों का करवाचौथ का व्रत निष्फल हो जायेगा। वैसे भी यह व्रत लंबी आयु के लिए रखा जाता है, हमेशा जीवित रखने के लिए नहीं। लंबी आयु माने जब तक स्त्री जीवित रहे। उसके बाद कौन जीवित रहता है या नहीं इससे किसी स्त्री का कुछ लेना-देना नहीं होता। बदलते सामाजिक माहौल में भी इस व्रत की महिमा कम नहीं हुई है। स्वावलंबी महिलाओं यहां तक कि पति का पालन करने वाली महिलाएं भी करवाचौथ का व्रत रखती हैं।कारण यही है कि प्रत्येक स्त्री ऐसे स्वामी का सानिध्य चाहती है जो साथी भी हो। क्या यह केवल स्त्री की अभिलाषा है? पुरुष भी यही चाहता है कि उसकी सर्वोच्चता को स्वीकारने वाली एक साथिन हो। उम्र बढ़ने के साथ एक दूसरे की उपयोगिता और बढ़ने लगती है। तब करवाचौथ वर्ष का मात्र एक पर्व नहीं रहा 


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