आज से पांच दिन पहले इतिहास का एक घोटाला पकड़ा गया है।जिसकी चर्चा जरुरी है। वर्ष 2015 में हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई हुई थी जिसमें 5 हजार साल पुराना दो मानव कंकाल मिले थे।पुरातत्व विभाग और जेनेटिक सांइटिस्ट के अधिकारियों ने उस कंकाल का दो बार डीएनए टेस्ट करवाया।एक डीएनए टेस्ट अमेरिका में हुआ तो दुसरा भारत में ही हुआ।..जो डीएनए रिपोर्ट प्राप्त हुआ उस पर जेनेटिक साइंटिस्ट के वैज्ञानिकों ने तीन साल तक भारत के अलग-अलग जातियों का 300 ब्लड सैंपल जुटाकर गहरा रिसर्च किया।अनुसंधान में पाया गया कि कंकाल का जीन और सैंपल में लिया गया सभी भारतीयों का जीन बिल्कुल मैच खाता है।उस कंकाल के डीएनए से सभी भारतीयों का डीएनए मैच खा रहा है।इतना ही शोध में पाया गया कि उस 5000 साल पुराने कंकाल के जीन से केवल भारतीयों का जीन ही नही ब्लकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के जनता के जीन से भी मिलान हो रहा है।
...फिर रिसर्च टीम के वैज्ञानिकों ने सैंकड़ों पन्ने में रिपोर्ट लिखकर और डिएनए के मैच हुए सैंपल को पुरी दुनिया के अनुसंधानकर्ताओं को दिखाया।उसके बाद पांच दिन पहले इस रिपोर्ट को भारत में सार्वजनिक किया गया कि -"आर्य न तो बाहर से आए थें और न ही आक्रमणकारी थे ब्लकी वें भारत के मूल निवासी हैं।और अफगानिस्तान से लेकर कन्याकुमारी तक सभी आर्य नस्ल के हैं सभी का डीएनए एक है।
...दरअसल कड़वी सच्चाई यह है कि- आर्यो के बाहरी होने की थ्योरी सिर्फ मुस्लिमों और अंग्रेजों के बाहरी होने का थ्योरी का काउंटर करने का तरीका था और कुछ नही।...पश्चिमी दुनिया के ही अनेक ऐसे इतिहासकार जैसे टी.बरो, म्यूर ,एलिफिंस्टटन आदी ने बहुत ही बेबाकी पुर्ण रूप से अपनी-अपनी पुस्तकों में लिखा है।--"भारत में आर्यो का विदेशी होने का कोई प्रमाण या दुर-दुर तक संकेत नही है।"
...हम आर्यों को बाहरी होने की थ्योरी तीन अंग्रेज इतिहासकार द्वारा गढ़ी गई थी।(1) मार्टिमर ह्वीलर (2) स्टूअर्ट (3) डाइजेस्ट।
...इसमें से मार्टिमर ह्वीलर जो था जो था वह संस्कृत और वैदिक संस्कृत बिल्कुल नही जानता था।वह 1956-57 में उज्जैन आया था तब एक महान पुरातत्वविद् पद्मश्री डा.विष्णु श्री धर वाकणकर जिन्होने लुप्त हुई सरस्वती नदी को ढुंढ निकाला था उन्होने उज्जैन के होटल में मार्टिमर व्हीलर से अंग्रेजी बात की थी।उस वार्तालाप का अंश उल्लेख करना जरुरी है नही तो आप इस साजिश को नही समझ पाएगें।..(डा.वाकणकर भारत के एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् थे, सरस्वती नदी और भीमबेटका गुफा के खोज के लिए उन्हें पद्मश्री का पुरस्कार दिया गया था )
....डा वाकणकर --: क्या मैं आपसे कुछ पुछ सकता हुं ?
मार्टीमर व्ह्वीलर -- अवश्य ।
...डा. वाकणकर --: क्या आप वैदिक संस्कृत और संस्कृति से परिचित है ?
व्ह्वीलर --: नही । क्यों ?
... डा. वाकणकर --: आपने कहा है हड़प्पा-मोहनजोदड़ो शम्बरो के नगर थे ?
व्हीलर --: हां ! अवश्य ।
... डा. वाकणकर --: क्या आप वेदों में शम्बरों के नगर के बारे में क्या कहा गया है , वह जानते हैं ?
व्हीलर --: मैं नही जानता। वह क्या है ?
....डा. वाकणकर --: " य: शम्बरम् पर्वतेषु क्षिपन्तम् " शम्बर पर्वत के रहनेवाले थे ,मैदानों के नही।
व्ह्वीलर --: मैनें नही पढ़ा है।
....डा. वाकणकर --: मैंं ग्रिफिथ का वैदिक ग्रामर लाया हुं।इसमें इसका उल्लेख है।
व्ह्वीलर --: मैं नही जानता हुं और न जानना चाहता हुं।
डा. वाकणकर --: तो फिर बात करना ब्यर्थ है।धन्यवाद
...इस वार्तालाप को पढ़ने के बाद दिमाग की बत्ती जल गई होगी कि हम आर्यों को विदेशी सिद्ध करने वाला इतिहासकार संस्कृत के संबध में कितना शुन्य ज्ञान रखता था।विदेशी इतिहासकारों ने आर्य को विदेशी बताने से पहले मात्र दो ग्रंथ महाभारत और योगावशिष्ठ पढ़ लिया होता तो यह घोटाला न करना पड़ता।
...खैर इन दोनों धर्मग्रंथों में आर्य किसे कहा गया यह देखीए --:
महाभारत में आर्य का परिभाषा --: " कर्तव्यमाचरन् कार्यं करोति स: आर्य इति स्मृत: "---: अर्थ - कर्तव्य के अनुकूल आचरण वालें को आर्य कहते हैं।........ अब योगावशिष्ठ में आर्य का परिभाषा --: " कर्तव्यमाचरण कामं अकर्तव्यमाचरन् तिष्ठति। प्रकृतिचारे स तु आर्य इति स्मृत: ..अर्थ --: योग्य कार्य को करनेवाला और अयोग्य कार्य को न करनेवाला आर्य कहलाता है।
लेखक -: संजीत सिंह
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