डा. गोवर्धन लाल गर्ग की रचना ने सूर्योपासना को नवस्वर प्रदान किया
जयपुर/गंगापुरसिटी। प्राचीन वेदों में वर्णित सूर्य देव की महिमा को समर्पित एक भावविभोर काव्य रचना डॉ. गोवर्धन लाल गर्ग द्वारा प्रस्तुत की गई है, जो न केवल आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है, बल्कि विज्ञान, जीवन और प्रकृति के गूढ़ संबंधों को भी उजागर करती है।
"हे दिवाकर देव!" से प्रारंभ होकर यह स्तुति सूर्य के सप्त किरणों, उषा की चेतना, रोगों के शमन और दिन-रात्रि के चक्र तक का सूक्ष्म विवरण प्रस्तुत करती है। कवि ने लिखा है कि सूर्य अपने उदय से कर्मशीलता का पाठ पढ़ाते हैं और जीवनदायी ऊर्जा के रूप में समस्त लोकों को धारित करते हैं।
इस स्तुति में सूर्य को केवल ज्योतिर्मय तारा नहीं, अपितु साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बताया गया है—जिसे देखना, नमन करना, परमात्मा को नमन करने के समतुल्य है। सात रंगों में विभाजित किरणों को इन्द्रधनुष के रूप में वर्णित कर कवि ने उनके प्राणदायी गुणों को रेखांकित किया है।
कविता का विशेष आकर्षण यह है कि यह न केवल भक्ति से परिपूर्ण है, बल्कि पर्यावरणीय चेतना, जैविक जीवन और प्रकृति के चक्र को भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दर्शाती है।
"क्या वेद, क्या उपनिषद, क्या पुराण—सब सूर्य महिमा से ओतप्रोत हैं।" इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने सूर्य के सार्वभौमिक स्वरूप को रेखांकित किया है।
डा. गोवर्धन लाल गर्ग की यह प्रस्तुति वेदों की सारगर्भिता को आधुनिक पाठकों के लिए एक नवीन भावभूमि में प्रस्तुत करती है, जो आस्था, विज्ञान और संस्कृति के संगम की अद्वितीय मिसाल है।
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