ओ३म् निराकार व नित्य है

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


ओ३म् अक्षर की आकृति कल्पित है। वह परिवर्तित हो सकती है, और होती आई है। इस समय भी ओ३म् अनेक आकृतियों में लिखा जाता है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में भी उसके भिन्न-भिन्न आकार हैं। परन्तु 'ओ३म्' का उच्चारण 'ओ३म्' की ध्वनि सब समयों में एक रही है, इसमें परिवर्तन हुआ भी नहीं, और हो भी नहीं सकता। सब भाषाओं में वह एक सी है। इसलिए ध्वनि का उच्चारण ही 'ओ३म्' है, आकृति नहीं, आकृति केवल संकेत मात्र है।
बालक को 'ओ३म्' का उच्चारण बताये बिना आकृति मात्र से 'ओ३म्' का ज्ञान कदापि नहीं हो सकता। परन्तु आकृति के ज्ञान से सर्वथा शून्य जन्मान्ध को ओ३म् का उच्चारण सुनकर 'ओ३म्' की ध्वनि का पूर्ण और शुद्ध ज्ञान हो जाता है। वास्तव में शब्द का प्रकाश उच्चारण में होता है, और उच्चारण अर्थात् ध्वनि निराकार है, अक्षर और शब्द दोनों ही। इसलिए सभी दार्शनिक पण्डित शब्द को निराकार मानते चले आये हैं।



आकृति का ज्ञान आँखों और शब्द का श्रोत्र से होता है, आँखों से नहीं। आकृतियों में परिवर्तन होता रहता है, वे बनती भी हैं और बिगड़ती भी। यदि शब्द भी आकारवान् होता तो बनता बिगड़ता रहता, और अनित्य होता। कुशाग्रबुद्धि आर्य दार्शनिक शब्द को निराकार और नित्य मानते हैं। 'ओ३म्' शब्द है, इसलिए निराकार नित्य और सनातन है। इसका वाच्य भी निराकार, नित्य और सनातन है।


 


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