महर्षि दयानन्द वि वि के हिन्दी विभाग में हिन्दी सप्ताह के अन्तर्गत हिन्दी विकास की बाधाओं पर मन्थन किया गया। मुख्य अतिथि प्रो महावीर धीर शास्त्री ने हिन्दी विकास के लिए व्याख्यान माला का आरम्भ करते हुए कहा कि अंग्रेजी की बेडियां काटे बिना भारतीय भाषाओं का विकास संभव नहीं हो सकता है! न्याय के मंदिरों में राष्ट्रभाषा सहित भारतीय भाषाओं पर प्रतिबंध लोकतंत्र पर कलंक है! हिन्दी दिवस का झुंझना बजाते हुए भारत को 78 वर्ष हो गए, लेकिन चिकित्सा अभियंत्रण व विज्ञान सहित अनेक विषयों को राष्ट्रभाषा में सुचारु रूप से पठन पाठन का हम प्रबंध नहीं कर पाए हैं! हिन्दी दिवस मनाने का थोथाप्रदर्शन करना हिन्दी का उपहास उडाने के समान है! हिन्दी दिवस पर हिन्दी विकास की नई नई नीतियां जारी की जाएं तो ही हिन्दी दिवस सार्थक हो सकता है! नहीं तो इस ढोंग को बंद कर देना चाहिए ! यह तो हिन्दी की खिल्ली उडाना ही कहा जा सकता है! श्री शास्त्री ने कहा कि हमारे राजनेताओं ने हिन्दी को राजभाषा व अंग्रेजी को सह-राज भाषा घोषित करके देश के साथ बडा भारी छल किया है! राजभाषा तो उर्दू और अंग्रेजी भी रही हैं! हिन्दी देश में सर्वाधिक समझे जाने वाली तथा बडे भूभाग में बोले जाने वाली भाषा है! इसे राष्ट्रभाषा न कहकर राजभाषा कहना हिन्दी को गाली देने के समान है! जो निरन्तर दी जा रही है! हम एक ओर शिशु शालाओं से लेकर जन्म से मरण तक पूरे देश पर विदेशी लंगडी भाषा अंग्रेजी थोपकर मातृभाषाओं और राष्ट्र भाषा का गला घोटे हुए हैं तथा दूसरी ओर मातृ भाषाओं के उत्थान की थोथी बात भी करते रहते हैं! कोई भी भाषा सीखने में कुछ बुराई नहीं, लेकिन जिस शत्रु अंग्रेज ने हमारे पूर्वजों को परिवार सहित नंगा करके शरीर में कीलें ठोकर पेडों पर लटका दिया ! नंगे करके गाडी के पीछे बांधकर तेजी गाडी चलाकर घसीट घसीट कर मारा! उनकी लंगडी भाषा जिसका उच्चारण नहीं!कोई अक्षर दो पंक्ति में कोई तीन चार में, बडे छोटे,हाथ से लिखने और मुद्रण के अलग अलग अक्षर, उस शत्रु की भाषा पढ कर हम गौरव अनुभव करें, और अपनी सर्वोत्तम भाषा को बोलना लिखना पसन्द ही न करें! यह गहरी कुत्सित गुलामी की मानसिकता की परा काष्ठा है जो हमारे देश के नागरिकों में गहरे बैठ गई है! पहली संसद में 50% सांसदों ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी, यदि वह बात मान ली जाती तो आज सभी भारतीय भाषाएं समान रूप से विकसित होती और न ही भाषाओं में परस्पर कलह के दृश्य उभरते! क्योंकि संस्कृत किसी प्रदेश की भाषा न होने के कारण सब के लिए समान थी तथा भाषाओं, संस्कृति व गौरवमय इतिहास को पुष्ट करने की क्षमता रखती है। संस्कृत को नकार कर देश को संस्कृति व भाषाविहीन बनाने का षडयंत्र किया गया है। भोले भारतीय इसे समझने में असमर्थ रहे। श्री शास्त्री ने बडे कष्ट भरे शब्दों में युवाओं का आह्वान किया कि- जब तक एक एक नागरिक का राष्ट्रभाषा के प्रति समर्पण नहीं होगा उसको देश में उचित स्थान नहीं मिल सकता! हमारा परम कर्तव्य है कि जिस देश के अन्न जल से हमारा शरीर चल रहा है , जिस भाषा का व्यवहार हम 24 घंटे कर रहे हैं, उस माता रूपी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा का बनवास हम समाप्त करने के लिए कटिबद्ध हों!!
समारोह में भाषण कविता के प्रतिभागी छात्रों को पुरस्कार वितरण किया गया। समारोह की अध्यक्षता विभागाध्यक्षा श्रीमती डा पुष्पा ने की। इस अवसर पर डा कृष्णा, डा जयभगवान व अनेक शोध छात्र छात्राएं भी उपस्थित रही।
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