भाजपा करें आत्म मंथन

 फ्यूचर लाइन टाईम्स


कहो तो कह दूंः
 झाड़- खण्ड- खण्ड! भाजपा करें आत्म मंथन
जब  प्रधान मंत्री नरेंद मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में केंद्र सरकार का डंका देश विदेश में बज रहा हो तो झारखण्ड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में भाजपा के हाथ से सत्ता छिटक जाना सभी को चांैकाता जरूर है।पूर्वोत्तर के आदिवासी बहुल राज्यों में भी भाजपा का परचम बुलंद हो रहा है और परम्परागत रूप से भाजपा के प्रभाव वाले राज्यों में भाजपा के हाथ से सरकारें जाना भारतीय जन मानस को पुनः पढ़ने को मजबूर करती है। तीन तलाक,धारा-370,राम मंदिर,नांगरिकता संशोधन आदि पर जिसके साथ देश उठ कर खड़ा गया हो,तो फिर आत्ममंथन की और भाजपा को जाना ही होगा।
 दर असल जब पिछले वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार केे बाद पार्टी ने ईमानदारी से मंथन किया होता तो महाराष्ट्र में पार्टी के हाथ से सत्ता नहीं जाती।   जनादेश के मायने भी समझने की आवश्यकता है। अपनों द्वारा उपेक्षा करने से  हताश व निराश लोग उन्हीं को ले आते है जिनको उन्होंने हराया था।  33.77 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा ने झारखण्ड में सत्ता खो दी और 18.74 प्रतिशत मत ले कर तमाम प्रकार के भ्रष्टाचार के आरोपी रहे झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सीबू सोरेन और उनके बेटे ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। यानी भ्रष्टाचार और दल बदल कोई मुद्दा नहीं है। तो फिर पांच साल सत्ता में रहे गैर आदिवासी मुुख्यमंत्री रघुवर दास इतने खराब हो गए कि उन्हें सत्ता से हटना पड़ा। महाराष्ट्र में जनादेश भाजपा और शिवसेना को मिला फिर भी जनता द्वारा नकारे गए लोगों की मदद से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए। जनता है कि एक श्रेष्ट राजनेता यदि अहंकारी है, बदत्तमीज है तो उसको हाराने के लिए बुरे से बुरे को लाने में भी परहेज नहीं करती। हमने  मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र में देखा कि अपेक्षाकृत काफी अच्छी चल रही सरकारों को लोगों ने इसलिए हरा दिया कि वे अहंकारी थे।  संगठन को सत्ता का गुलाम बनाने की आदतें भाजपा ने कांग्रेस से सीखी है। राजस्थान में वसुंधरा जी ने संगठन को किनारे लगा दिया था और केंद्र  की हिम्मतत ही नहीं हुई कुछ करने की। आज तक राजस्थान में भाजपा अपने को खड़ा नहीं कर पा रही है। राज्यों में स्थानीय कांग्रेस के छत्रप भाजपा पर भारी पड़ रहे है।
भाजपा की ताजा हार के कारणों की ईमानदारी से समीक्षा हो तो समझ में आ जाएगा कि अपने ही समर्थकों और कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा,एक दूसरे को नीचा दिखाने की आदतें। स्थानीय विषयों को गंभीरता से नहीं लेना। राष्ट्रवाद को सही परिप्रेक्ष्य में न रखना आदि तमाम कारण है। जब से अमित शाह ने केंद्र में गृह मंत्री की बागडौर सम्हाली है संगठन बेसहारा हो गया। आज भाजपा संगठन की हालत यह है कि नेताओं में स्थानीय विषयों की समझ न के बराबर हैं। सांसद, विधायक,मंत्री, महापौर के पदों को सिर्फ  कमाई व मनोरंजन का साधन समझ लिया। रस्म अदायगी के लिए पदों पर सुशोभित हो कर जनता से दूरी बनाने में ही शान समझ बैठे हंै। सिर्फ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करिश्मे से काम नहीं चल सकता। राज्यों में भी संगठन को सीचं सकने वाले नेताओं की जरूरत है। भाजपा को सत्ता प्राप्ति के लालच को एक तरफ रख कर सिद्धांतों और मूल स्वरूप पर जोर देना होगा। जिस कांग्रेस को हरा कर भाजपा सत्ता में आती है, उसी का अनुसरण करने लगती है। भाजपा क केंद्र और राज्यों के नेतृत्व को चाहिए कि राष्ट्रवाद के साथ बेरोजगारी, , कृषि आधारिक अर्थव्यवस्था तथा पर्यावरण के विषयों को गंभीरता से लेना होगा। बैंकिंग प्रणाली से जनता का विश्वास चुक गया है। विश्वास को पुनः लौटाना होगा। अन्यथा राष्ट्रवाद की मूल विचारधारा खतरे में आजाएगी।


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