राजेश बैरागी- दिनांक 18 सितंबर 2019,कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में हॉट सीट पर पहुंची बबिता सुभाष ताड़े महाराष्ट्र के एक विद्यालय में मध्यान्ह भोजन बनाने का काम करती हैं।दो पालियों में लगभग साढ़े चार सौ बच्चों के लिए महीने भर भोजन बनाने वाली इस महिला को मात्र डेढ़ हजार रुपए वेतन मिलता है। यदि एक महीने में विद्यालय २५ दिन भी चलता हो तो उन्हें ६०₹ दिहाड़ी हासिल होती है।
इसी वर्ष सरकार ने श्रम कानूनों में सुधार के तहत न्यूनतम मजदूरी २४ हजार रुपए प्रतिमाह तय किया है। हालांकि यह संगठित क्षेत्र के लिए है परंतु विश्व की सबसे बड़ी सरकार प्रायोजित भोजन व्यवस्था 'मिड डे मील' को वास्तव में कौन चला रहा है?हजारों करोड़ रुपए की इस योजना में वास्तव में किसका योगदान सर्वाधिक है?गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की बात छोड़ दें। कहीं ये संगठन बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और कहीं इनका रिपोर्ट कार्ड केवल गंदा ही है। साढ़े चार सौ बच्चों को दो बार खाना(खिचड़ी) बनाकर खिलाने वाली बबिता सुभाष ताड़े केबीसी के मंच से साठ रुपए प्रतिदिन की पगार पाने का शोक नहीं जतातीं। वो खुश हैं और सरकार? सरकार की खिचड़ी खूब पक रही है।कभी शिवसेना के साथ, कभी शिवसेना के बगैर। सरकार को शर्म नहीं आती परंतु बबिता को शर्म है इसलिए वह बगैर छुट्टी लिए बच्चों के लिए खिचड़ी पका रही हैं ( फ्यूचर लाइन टाईम्स हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र )
0 टिप्पणियाँ