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प्रयोग, उपभोग और घर गृहस्थी

राजेश बैरागी:-
प्रयोग करने वाले अन्वेषक या वैज्ञानिक कहलाते हैं और उपभोग करने वाले उपभोक्ता। समस्त संसार में उपयोग करने वाले सभी हैं जबकि प्रयोग करने वाले बेहद कम हैं। प्रयोगों की शुरुआत कहां से हुई होगी। यदि आदिकाल से विचार करें तो पेट भरने अर्थात उदर पोषण के लिए सबसे पहला प्रयोग किया गया होगा।मांस, वनस्पति और जल के माध्यम से जीवन को बचाने के लिए किया गया प्रथम प्रयास प्रयोगों की श्रृंखला का जनक माना जा सकता है।खाने के क्षेत्र में लाखों वर्ष बीतने के बावजूद प्रयोगों का सिलसिला जारी है और घर गृहस्थी में यह महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अपने घर का खाना सबसे अच्छा लगना या हमेशा दूसरों के यहां अच्छा खाना बनने की चर्चा होना आम बात है।आम भारतीय घरों में सीमित साधनों के बावजूद स्वादिष्ट एवं पौष्टिक खाने की इच्छा किसे नहीं होती। ऐसे ही रोजाना एक ही प्रकार का खाना खाकर कौन खुश रह सकता है। चिकित्सकों द्वारा परहेज बताने के बावजूद रोगी जीभ को अच्छा लगने वाला खाना खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाते हैं इसलिए चिकित्सक परहेज को व्यापक रूप में अनुसरण करने की हिदायत देते हैं ताकि थोड़ा कम भी करे तो पूरा परहेज हो जाये। परंतु घर में अन्य कारणों के अलावा तनाव का एक प्रमुख कारण मनपसंद खाने की अपेक्षा भी है। दरअसल खाना बनाना और खिलाना एक महत्वपूर्ण कार्य है। बल्कि यह कार्य नहीं एक कला है जो हमेशा कुछ नया कुछ अलग कुछ बेहतर करने की मांग करती है। यह सुखी गृहस्थी का प्रथम सोपान और अनंतिम प्रयोग भी है न तो इसकी उपेक्षा हो सकती है और न इससे बचा जा सकता है।( फ्यूचर लाइन टाईम्स हिंदी साप्ताहिक नौएडा)


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