योगदर्शन में योगी को मन को प्रसन्न रखने के चार उपाय बताये गये हैं। वह सुखी जनों से मित्रता रखे। दुःखी जनों पर दया करे। पवित्र आचरणवालों से मिलकर प्रसन्नता का अनुभव करे और जो दुष्टप्रकृति के व्यक्ति हैं उनसे परे रहे।
काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को वश में रखने से मनुष्य को सुख की अनुभूति होती है। यदि व्यक्ति इनके वशीभूत हो जाता है तो वह दुःख को प्राप्त होता है। काम को वश में करने का उपाय है विचारों की पवित्रता, क्रोध को वश में करने का उपाय है मन की शान्ति, लोभ को वश में करने का उपाय है सन्तोष, मोह को वश में करने का उपाय है वैराग्य और अहंकार को विनम्रता से वश में करना चाहिए।
इच्छाओं पर नियन्त्रण करो। जितनी इच्छाएँ अधिक होंगी उतनी ही भाग-दौड़ अधिक करनी पड़ेगी। जितनी इच्छाएँ कम होंगी व्यक्ति उतना ही सुखी होगा।
जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने की दौड़ ने भी हमारे दुःखों में वृद्धि की है। रातों-रात कैसे धनवान बना जाए, इस विचार ने भी अनैतिकता और अपराधों में वृद्धि की है। ऐसे लोगों का लक्ष्य भी यही बन गया है― येन-केन प्रकरेण कर्तव्यो धनसंग्रहः, अर्थात् जिस किसी प्रकार से धन-संग्रह करना चाहिए। ध्यान दीजिए―तीन प्रकार के व्यक्ति कभी नैतिक नहीं हो सकते―पहले वे जो यह चाहते हैं कि जैसे-तैसे भी हो धन-संग्रह करना चाहिए। दूसरे वे जो यह चाहते हैं कि जैसे भी हो हमारा कार्य सिद्ध होना चाहिए। तीसरे वे जो यह चाहते हैं कि जैसे भी हो सत्ता हमारे हाथ में रहे। इस प्रकार के तीनों व्यक्ति कभी नैतिक नहीं हो सकते। यह प्रवृत्ति भारत के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध हो रही है। अवैध साधनों से धन कमाकर यदि जीवन-स्तर ऊँचा उठाया तो क्या? वैध साधनों से सन्तुष्ट रहने में ही हमारे जीवन की सार्थकता है अन्यथा जो दशा अमेरिका और यूरोप के निवासियों की हो रही है वह अवस्था यहाँ के निवासियों की भी होगी। अनिद्रा, बेचैनी, मानसिक तनाव, भय, शारीरिक रोग और आत्महत्याओं की वृद्धि होगी और भ्रष्टाचार के कारण यह सब-कुछ देश में बढ़ भी रहा है, अतः वैध साधनों में ही रहकर हमें सन्तुष्ट रहने का अभ्यास करना चाहिए।
समाचार पढ़ते समय आप जो चोरी-डाका, हत्याएँ, व्यभिचार, छल-कपट की घटनाएँ पढ़ते हैं उन्हें पढ़कर दिल में कोई स्थान न दीजिए। भ्रष्टाचार की घटनाएँ जो दिन-प्रति-दिन देश में बढ़ रही हैं उनको भी मन में स्थान न दीजिए अन्यथा आप अपने मन को शोकमय बना लेंगे। इन घटनाओं को सहज भाव से लीजिए, क्योंकि सारे देश का सुधार करना आपके वश में नहीं है।
कोई भी कार्य जल्दबाज़ी से न कीजिए, क्योंकि जल्दबाज़ी से किया गया काम सदा हानि का कारण बनता है। भली-भाँति सोच-विचार कर किया गया काम ही लाभदायक होता है।
दूसरों की आलोचना उनकी पीठ पीछे मत करो। अपनी की हुई आलोचना जब उस तक पहुँचेगी तो उसे दुःख होगा। प्रतिक्रियास्वरूप वह भी कटु वचन कहेगा। हो सकता है कि वह रोष और क्रोध के वशीभूत होकर गाली-गलौज और मार-पिटाई पर उतर आये। इस प्रकार कलह और दुःख की वृद्धि ही होगी। अतः दूसरों की कमियाँ उनकी पीठ पीछे कहने के स्थान पर उनको एकान्त में प्रेमपूर्वक और शान्तिपूर्वक सुझाओ ताकि उसका सुधार हो और दुःख के स्थान पर शान्ति और सुख की वृद्धि हो।
लेखक: प्रा. रामविचार एम.ए.
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