हेलमेट और सीट बेल्ट को बोझ और बंधन के बजाय गहना या अलंकार मानें तो क्या ग़लत होगा , राजेश बैरागी :-
हो सकता है कि कुछ लोगों को यह बोझ लग रहा हो,हो सकता है कुछ लोगों को यह बंधन लगता हो और अपनी जान माल की फ़िक्र भी न हो तो भी निजाम का हुक्म बजाना पड़ रहा है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब जेब कटना अपरिहार्य हो जाए तो सतर्कता में ही समझदारी होती है। हालांकि हेलमेट और सीट बेल्ट को बोझ और बंधन के बजाय गहना या अलंकार मानें तो क्या ग़लत होगा। वर्तमान में सड़कों पर अलंकृत लोगों को वाहन चलाते देखकर बेहद सुकून मिलता है। चौराहों पर लालबत्ती देखकर रुक जाने वाले लोग क्या दलित शोषित पिछड़े वर्ग के होते हैं। दूसरों की बारी पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को बेहया, बेशर्म और उद्दंड की उपाधि से क्यों नहीं नवाजा जाना चाहिए। उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखने पर उनकी हिफाजत हो सकती है।नये यातायात नियमों में सड़कों पर अपनी व दूसरों की जान के लिए चुनौती बने राहगीरों पर ठोंककर जुर्माना लगाने का विरोध ऐसा ही है जैसे हत्या का दोषी न्यायाधीश से रहम की याचना करता है। जुर्माने पर मत जाइए, जुर्म की बात करिए। जुर्म नहीं तो जुर्माने से क्या डर। जहां तक देश की सड़कों का हाल है, सड़कें जानलेवा हैं। सड़कों के तकनीकी और भौतिक खस्ताहाल के लिए सरकारों को कतई माफ नहीं किया जा सकता। परंतु इस बहाने सड़कों पर राहगीरों को टिक-टॉक करने की छूट भी नहीं दी जा सकती है। लिहाजा अपने गहनों को पहन कर सड़क पर उतरें।आपको किसी की नजर भी नहीं लगेगी।( फ्यूचर लाइन टाईम्स हिंदी साप्ताहिक नौएडा )
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