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मोक्षदायिनी बाढ़ माता , राजेश बैरागी

राजेश बैरागी :बाढ़ माता तुम्हारी जय हो। तुम जब भी आती हो, विकराल हो जाती हो। शायद तुम अपने किनारों पर मानव जो नदियों को मां कहता है,हाथ जोड़कर प्रणाम करता है, अपने सुखी जीवन की भीख मांगता है के द्वारा फैलाई गई गंदगी को देखकर आपा खो देती होंगी। तुम्हारा क्रोध वाजिब है मां। पश्चिम के सिद्धांत 'यूज एंड थ्रो' को हमने पूरी तरह अपने जीवन में उतार लिया है और नदी माताओं पर पूरा का पूरा प्रयोग किया है।हम गंदगी करते हैं और छोड़ देते हैं।हमने न जाने कितने हज़ार करोड़ रुपए नदियों की सफाई के बहाने गंदगी के ढेर में दबा दिए। न जाने कौन होगा जो दूसरों की छोड़ी हुई गंदगी को ठिकाने लगायेगा।हम तो उसे आपके ठिकाने पर छोड़ आते हैं। फिर आप आती हो हर वर्ष क्रोध से उफनती, किसी की परवाह न करते हुए, नदी के प्राकृतिक रास्ते में जबरन घुस कर बैठ गए लोगों को उजाड़ते हुए।हम त्राहि त्राहि कर उठते हैं क्योंकि पाप का परिणाम और प्रायश्चित त्राहि में ही पूर्णता प्राप्त करता है। इसलिए हे बाढ़ माता आप हर वर्ष नहीं हर माह बल्कि प्रतिदिन आया करो।हम भागीरथ तो नहीं हैं जो पुरखों और सकल समाज के तारण हेतु गंगा को पृथ्वी पर आने को विवश कर सकें। हमें तो स्वयं की मोक्ष के लिए आप का ही सहारा है।आप नहीं आयेंगी तो हम अपनी ही गंदगी में सड़ कर मर जायेंगे।( फ्यूचर लाईन टाइम्स हिंदी साप्ताहिक नौएडा)


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