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डर क्या है ? राजेश बैरागी

राजेश बैरागी-
क्या देश में बोलने, विचार प्रकट करने या विचारों का समर्थन करने पर कोई रोक है? मेरे एक मित्र ने दो दिन पहले पी चिदंबरम पर लिखी मेरी एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पोस्ट पर केवल एक लाईक आया है जो इस बात का संकेत है कि आम आदमी डरा हुआ है। हालांकि हर प्रतिक्रिया को गंभीरता से लेना जरूरी नहीं होता परंतु मित्र के आंकलन से गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। मसलन किसी पोस्ट पर लाईक न आना आम आदमी के डर की वजह हो सकता है। जहां तक फेसबुक के फंक्शन्स को मैं जानता हूं वहां नापसंद करने का कोई विकल्प नहीं होता। पढ़कर भी पसंद प्रकट न करने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है। अनावश्यक लाईक करने वालों की संख्या बेहद ज्यादा है। जहां तक आमजन के डरे होने का दावा है तो इसकी पड़ताल की जानी चाहिए।दो दिन पहले संत रविदास के मंदिर को तोड़े जाने के विरोध में भारी संख्या में दिल्ली पहुंचे भीम आर्मी के लोग कितने डरपोक होंगे। हवाई हमलों और तमाम सैन्य कार्रवाई के बावजूद नक्सली हमले जारी रहने के पीछे डर का कौन सा संस्करण काम कर रहा है। सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी, राज्य को खंडित होने और पत्थरबाजों को दूसरे राज्यों की जेलों में स्थानांतरित करने के बावजूद अलगाववादी संगठन कश्मीर में यूएन चलो के नारे वाले पोस्टर चिपका देते हैं तो डर को ढूंढना और मुश्किल हो जाता है। फेसबुक, व्हाट्स ऐप पर चौबीसों घंटे चलने वाली सरकार की झूठी सच्ची आलोचना भी यदि डर के साए में हो रही है तो यह कहने में क्या संकोच कि एक सही सरकार को बदनाम करने के लिए बे-सिर-पैर के डर का हौव्वा खड़ा किया जाए।डर का हौव्वा भी डर भगाने का अचूक उपाय माना जाता है। (फ्यूचर लाईन टाइम्स हिंदी साप्ताहिक समाचार-पत्र )


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