गुर्जर आंदोलन के पुरोधा कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की जन्म जयंती पर नमन

सोशल मीडिया पर दी जा रही श्रद्धांजलि

एक्स (ट्विटर) समेत तमाम सोशल मीडिया साइट पर कर्नल बैंसला को श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। गुर्जर वारियर्स एक्स एकाउंट पर हजारों यूजर्स ‘गुर्जर समाज चेतना दिवस’ लिखकर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। एक यूजर्स रविंद्र भाटी गुर्जर लिखते हैं कि, ”कर्नल तेरी नेक कमाई तूने सोती कोम जगाई , कर्नल साहब का ये सपना हम पुरा करेंगे कश्मीर से कन्याकुमारी तक समाज को एक सूत्र में पिरोकर समाज की एकता की मिशाल कायम करेंगे आपके अधूरे सपने को ,और जो मशाल आपने जगाई है उससे बुझने नही देंगे आपके दिखाए रास्ते पर चलेंगे”

12 सितंबर 1940 को राजस्थान के करोली जिले के गांव मुंडिया में बच्चू सिंह के घर जन्मे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला सेना में कर्नल थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई, जिसके बाद उन्होंने भरतपुर और जयपुर के महाराजा कॉलेज में पढ़ाई की। वे बचपन से ही काफी कुशाग्र थे इसलिए माता-पिता ने उन्हें करोड़ों में से एक नाम दिया किरोड़ी। वे जाति से बैंसला हैं यानि गुर्जर। बचपन में काफी कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। बैंसला के तीन पुत्र और एक पुत्री है। बड़े पुत्र दौलत सिंह सेना में कर्नल पद से सेवानिवृत हो गए। दूसरे पुत्र जय सिंह मेजर जनरल तीसरे पुत्र विजय बैंसला सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं। उनकी पुत्री सुनीता राजस्व सेवा की अधिकारी है। उनकी पत्नी का निधन हो चुका है। गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोडी सिंह ने अपने कैरियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर ही थी लेकिन पिता के फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज की तरफ थी। उन्होंने भी सेना में जाने का मन बना लिया। वह सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए।

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का सैन्य सफर

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अपनी बहादुरी का जौहर दिखाया। वे राजपूताना राइफल्स में थे और पाकिस्तान के युद्धबंदी भी रहे। उनके सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर का चट्टान’ कहते थे और साथी कमांडो ‘इंडियन रेम्बो’ कहा करते थे। उनकी बहादुरी और कुशाग्रता का ही नतीजा था कि वे सेना में एक मामूली सिपाही से तरक्की पाते हुए कर्नल के रैंक तक पहुंचे और फिर रिटायर हुए।

गुर्जर आंदोलन के पुरोधा थे कर्नल

देश की सेवा के बाद कर्नल किरोडी सिंह बैंसला ने अपने जीवन में दूसरी बड़ी लड़ाई गुर्जर समाज के लिए लड़ी। सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उन्होंने गुर्जर आरक्षण समिति की अगुवाई की। कर्नल बैंसला ने 2004 से गुर्जर समाज को अलग से आरक्षण दिए जाने की मांग करते हुए आरक्षण आंदोलन की कमान अपने हाथ में ली थी। आरक्षण के लिए वह समाज के लोगों के साथ कई दिनों तक ट्रेन की पटरी और सड़क पर बैठे रहे। उनके आंदोलन के बाद राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे की सरकार ने कमेटी बनाई, जिसने गुर्जरों की हालत पर रिपोर्ट तैयार की। लंबे चले आरक्षण आंदोलन के बाद गुर्जर सहित पांच जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ पहले स्पेशल बैक वर्ड क्लास और फिर मोस्ट बैक वर्ड क्लास (एमबीसी) में अलग से आरक्षण मिला।

सरकारी नौकरी में आरक्षण

इसके बाद वह गुर्जरों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के लिए रेल और सड़क मार्ग जाम करने लगे। आरक्षण के लिए उनका आंदोलन इतना तेज़ चला कि अदालत को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा। 2008 में गुर्जर आरक्षण के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में 70 लोगों की जान चली गई थी। आरक्षण के लिए गुर्जर समाज के लोग कई माह तक रेलवे ट्रेक और हाईवे जाम करके बैठे रहे थे।देशसेवा के बाद बैंसला ने गुर्जर समुदाय के हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी और वो राजस्थान के गुर्जरों के लिए अलग से एमबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिलाने में कामयाब भी रहे थे। वो गुर्जर आरक्षण के पुरोधा कहलाते थे।

किरोड़ी सिंह बैंसला और राजनीति

गुर्जर आंदोलन के बाद बैंसला ने राजनीति में प्रवेश किया। साल 2019 में बैंसला और उनके बेटे भाजपा में शामिल हुए थे। बैंसला भाजपा के टिकट पर टोंक- सवाई माधोपुर लोकसभा से सीट से चुनाव लड़े लेकिन वो कांग्रेस के नमोनारायण मीणा से चुनाव हार गए थे।

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