भटनेर राजस्थान में जल संरक्षण

दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स विशेष संवाददाता‌ गौतमबुद्धनगर।
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मरुभूमि राजस्थान में जहां सीमित दिनों में औसत से भी कम वर्षा होती है।वहां प्राचीन काल से ही वर्षा जल को अमृत की तरह सहज कर रखा जाता रहा है। 
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित भारत के एकमात्र प्राचीनतम 1800 वर्ष पुराने  भटनेर के किले में जल संरक्षण का यह उत्कृष्ट नमूना इसका सशक्त प्रमाण है इस किले का बेहद गौरवशाली इतिहास रहा है जितने भी पश्चिम से आक्रांत आए उनके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा यह किला बना रहा है। गुर्जर प्रतिहार वंशी राजाओं  से लेकर पृथ्वीराज चौहान, जैसलमेर के मध्यकालीन शासकों का भी इस किले पर आधिपत्य रहा है ।तुर्क  अफ़गानों मुगलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी इस  किले को क्षतिग्रस्त करने में। इस किले सहित ऐसी जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण भाटी शासकों ने कराया था तीसरी शताब्दी में हुए भूपत भाटी उनमें प्रमुख हैं। 52 बीघे में फैले हुए इस किले में पड़ने वाली वर्षा की की एक एक बूंद बहकर किले के अंदर स्थित कूपों  में पहुंच जाती थी । किले के अंतः निवासी ही नहीं बाहरी प्रजा भी  सूखे अकाल में इस जल का उपभोग व उपयोग करती थी गौ आदि जीव भी जल पाते थे। भारत के राजा महाराजा जल संरक्षण में माहिर थे। जब राजा जल बचायेगा तो प्रजा क्यों न जल बचायेगी ,यथा राजा तथा प्रजा । आज लोकतंत्र में ना ही राजा (मंत्री ) दिवान (नौकरशाह )जल बचा रहे हैं और ना ही जल संरक्षण को लेकर जागरूक है तो नागरिक कहां से जागरूक हो जिसे देखो वह जल की बर्बादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है इस भाव से कार्य कर रहा है।आज भी  जल संरक्षण सहित बहुत से क्षेत्रों में  लोकतंत्र, राजतंत्र के सामने असफल बोना प्रतीत होता दिखाई देता है ।

आर्य सागर खारी

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