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गोवर्धन पर्वत की उपयोगिता एवं उद्देश्य

 फ्यूचर लाइन टाईम्स,दिनांक अक्टूबर 28,2019,मोहित खरवार संवाददाता,नोएडा  : कृष्ण ने गोवर्धन उठाया था या वे आसपास के सभी लोगों को लेकर गोवर्धन पर्वत पर चले गए थे परंतु उस महत्वपूर्ण घटना का आदर्श संदेश यही था कि सामूहिक प्रयास से प्राकृतिक आपदा से भी पार पाया जा सकता है। तब से अब तक युगों का परिवर्तन हो गया परंतु गोवर्धन की विशालता कम नहीं हुई। बल्कि गोवर्धन बढ़ता ही जा रहा है। यह घर घर तक पहुंच गया है या यूं कहें कि कि यह घरों में सिमट गया है।हर घर एक गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी पर उठाए घूम रहा है। घरों की ड्यौढ़ी मिली हुई हैं परंतु गोवर्धन अलग है। आधुनिक निवास स्थलों सेक्टर, सोसायटी में हालांकि सामूहिक गोवर्धन पूजन की परंपरा वापस लौट रही है। इसके लिए आधुनिक निवासियों में परस्पर सद्भाव की भावना का विकास नहीं है अपितु जगह की कमी ने ऐसे उत्सवों की सामूहिक परंपरा अदायगी को अहमियत दी है। क्या हम अकेले ही गोवर्धन को उठा सकते हैं? साधनों की प्रचुरता ने ऐसी मानसिकता पैदा की है हालांकि यह खोखलापन है। अकेले खुशी नहीं मनायी जा सकती,दुख का पर्वत तो उठेगा कैसे।धन्, संपत्तियों की शक्ति अकेलेपन का सृजन करती है। गोवर्धन पूजा एक से एक मिलकर अनेक हो जाने की पूजा है। यह घर में छुपकर नहीं, चौबारे पर शक्ति संतुलन की पूजा है। यह कुटीर नहीं महा उद्योग है।हम सबको आज अपनी कुंठाओं, हठधर्मिता, वैमनस्य, एकांकीपन को गोवर्धन को सौंप देना है। ऐसा केवल तभी हो सकता है जब एक गांव, मुहल्ले, सेक्टर, सोसायटी का एक गोवर्धन पूजा जाए।


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