डीआरडीओ ने कई उत्कृष्ट आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया !

फ्यूचर लाइन टाईम्स, दिनांक अक्टूबर 21,2019,मोहित खरवार नोएडा: राजेश बैरागी-लगभग हजार वर्ष पूर्व जिस भारतीय चिकित्सा पद्धति का शोध एवं विकास बाधित हो गया था क्या वह अनुपयोगी थी? क्या गोबर, गौमूत्र, किसी घास की चटनी अथवा किसी पौधे की जड़ में औषधीय गुण नहीं हो सकते हैं? पिछले दिनों जब योगगुरु रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण अचानक बीमार हुए और उन्हें अंग्रेजी उपचार वाले अस्पताल में भर्ती कराया गया तो एक व्हाट्स ऐपीय विद्वान की टिप्पणी थी,-न गोबर काम आया न गौमूत्र। तो फिर पिछले ढाई वर्ष से एम्स के शीर्ष माइक्रोबॉयोलॉजी के विशेषज्ञ आयुर्वेदिक औषधि मृत्युंजय रस में क्या तलाश रहे थे। इन विशेषज्ञों ने इस और कुछ और आयुर्वेदिक औषधियों के मिश्रण से एक ऐसी एंटीबायोटिक दवा ईजाद की है जो शरीर में संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया को निष्क्रिय कर सकती है। परंतु ऐसा तो पहले से एलोपैथिक दवाओं में मौजूद एंटीबायोटिक कर ही रही थीं। बताया गया है कि फीफाट्रोल नामक यह आयुर्वेदिक एंटीबायोटिक ज्यादा प्रभावी है तथा इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होगा।असल बात यही है। किसी भी चिकित्सा पद्धति में मानव जाति और दूसरे जीवों को रोगमुक्त करने तथा स्वस्थ बनाने का सर्वोच्च उद्देश्य निहित रहता है एलोपैथी में दो विशेषताएं खास हैं। एक तो तत्काल राहत दूसरी शल्य क्रिया। आयुर्वेद का लक्ष्य रोग नहीं रोगी रहा है। अन्य चिकित्सा पद्धतियों जैसे होम्योपैथी, यूनानी, सिद्धा आदि की अपनी विशेषताएं हैं। किसी को भी नकारना अथवा उसका उपहास करना मूर्खता का कार्य है। एलोपैथी के चिकित्सक अनेक बार दवाओं को बदलकर प्रयोग करते हैं तो क्या वह पैथी अनुपयोगी मान ली जाए। यहां गौरतलब है कि अंग्रेजी दवाइयां बनाने वाली देश-विदेश की सभी कंपनियां जहां अन्य चिकित्सा पद्धतियों को नेस्तनाबूद करने के पुरजोर षड्यंत्र में लगी हैं वहीं एम्स जैसे संस्थानों के एलोपैथी चिकित्सक आयुर्वेद और योग पर शोध में जुटे हैं। डीआरडीओ ने 
कई उत्कृष्ट आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण भी किया है। शायद उन्हें आयुर्वेद की अद्भुत क्षमता का संकेत मिल गया है।


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