फ्यूचर लाइन टाईम्स,दिनांक अक्टूबर,संवाददाता मोहित खरवार, नौएडा : देश की स्वास्थ्य सेवाओं में झौलाछाप चिकित्सकों का कितना योगदान है? यह सवाल किसी प्रतियोगी परीक्षा को स्तर प्रदान कर सकता है। खासतौर पर ग्रामीण भारत में रोगियों और अधिकृत उपचार की लंबी दूरी के बीच मामूली चिकित्सकीय ज्ञान रखने वाले कथित झौलाछाप डॉक्टर अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कस्बों और महानगरों में भी झौलाछाप डॉक्टर महंगे इलाज के लिए अयोग्य निर्धन रोगियों के लिए बड़ा सहारा हैं। सरकार इनके खिलाफ है परंतु हाल ही में नोबेल से सम्मानित अर्थशास्त्री अभीजित बनर्जी इन्हें स्वास्थ्य सेवाओं की मुख्यधारा में लाने की वकालत कर रहे हैं।उनका कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच के चलते हमें सच्चाई को स्वीकारना चाहिए।उनका सुझाव है कि झौलाछाप चिकित्सकों को जरूरी प्रशिक्षण देकर स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा बढ़ाया जा सकता है। मैं पिछले कई वर्षों से अपने लेखों के माध्यम से और सार्वजनिक मंचों पर झौलाछाप चिकित्सकों की उपयोगिता को लेकर बात रखता रहा हूं। मुझे लगता है कि स्वास्थ्य सेवाएं जो मूलभूत सुविधा है को ऐसे प्रैक्टिसनर के साथ मिलकर व्यापक आकार दिया जा सकता है। व्यवसाय से आगे बढ़ कर पैसा कमाने का आसान जेब काटने जैसा जरिया बन चुके चिकित्सकीय पेशे की एक और विडंबना यह भी है कि योग्यता हासिल करने के बाद कोई चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं जाना चाहता। क्या इन परिस्थितियों में ग्रामीण भारतीयों को रोगग्रस्त होने पर मरने के लिए छोड़ा जा सकता है? सरकारें यही कर रही हैं। खुद से सुविधा दे पाने में असमर्थ सरकार झौलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ अभियान चलाती हैं। अभिजीत बनर्जी का इन्हें प्रशिक्षण देकर प्राथमिक चिकित्सा के लिए तैयार करने का सुझाव स्वागत योग्य है। उनके इस सुझाव को झौलाछाप समझकर नकारना नहीं चाहिए ।
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