भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) का बढ़ता प्रभाव

राजेश बैरागी- पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन का असर एक बार फिर बढ़ रहा है। आमजन से जुड़े मुद्दों पर आक्रामक जनांदोलन खड़ा करने के अपने पुराने पैटर्न से यह संगठन वापस मुख्यधारा में लौट आया है। हालांकि मौजूदा दौर में पुलिस प्रशासन की नरमी से सत्ता के परोक्ष समर्थन का अंदेशा भी गहराने लगा है।
        १९८६ में बिजली की बढ़ी दरों के विरोध में आंदोलन से शुरू हुआ भारतीय किसान यूनियन का सफर लगभग ३४ वर्ष पुराना हो चुका है।पूरे देश में चर्चित होने के बावजूद अपने देशी अंदाज और क्षेत्र को न छोड़ने वाले बाबा टिकैत की १५ मई २०११ को मृत्यु होने के बाद भाकियू का असर भी मिटने लगा था। उनके बेटे राकेश टिकैत की राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने उन्हें लाइमलाइट में तो बनाये रखा परंतु संगठन पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ती गई। नतीजतन एक लंबे अरसे बाद राकेश टिकैत को सच्चाई समझ आयी और उन्होंने भाकियू को उसके मूल परंपरागत रूप में पुनर्जीवित करने के प्रयास किए। अब यह संगठन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कैडर और कार्यक्रमों के मामले में समृद्ध हो चला है। क्षेत्र के मथुरा, आगरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, बागपत,मेरठ, हापुड़ आदि जिलों में इस संगठन ने एक बार फिर जनसमस्याओं की नब्ज पकड़नी शुरू कर दी है।बात किसानों की आबादी की हो या बिजली दरों में वृद्धि की,टोल नाकों से लेकर पुलिस प्रशासन के खिलाफ यह संगठन अपने पुराने पैटर्न पर आक्रामक रुख अपना रहा है। इस संगठन की बातें पुलिस प्रशासन भी गंभीरता से सुन रहा है। इससे जनाधार को मजबूती मिल रही है। क्या इस संगठन को पुनः सक्रिय करने में वर्तमान सत्ताधारी दल का परोक्ष समर्थन है? चौधरी खानदान (अजित सिंह एंड संस)का वजूद समाप्त करने के लिए ऐसा संभव है। तो भी किसानों के हित में इस संगठन का पुनर्जीवित होना बुरा नहीं।(फ्यूचर लाईन टाइम्स हिंदी साप्ताहिक )


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