फ्यूचर लाइन टाईम्स
राजेश बैरागी-
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। जीडीपी नीचे चली गई है। निजी क्षेत्र में नौकरियों पर संकट छाया हुआ है और ऑटोमोबाइल सेक्टर में अभूतपूर्व निराशा है।इन सारी परिस्थितियों के लिए वर्तमान केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और यह गलत भी नहीं है। कांग्रेस या दूसरे राजनीतिक दलों को दोषी ठहराया भी नहीं जा सकता क्योंकि जो सत्ता में नहीं है वह जिम्मेदार भी नहीं होता।
वर्तमान में यदि हम तटस्थ होकर विचार करें तो तो कुछ चीजें काबिले गौर हैं। मसलन पीली धातु अर्थात सोना चालीस हजारी हो गया है। शराब की खपत निरंतर बढ़ रही है। वाहनों के दाम बढ़े हैं। शेयर बाजार अपनी ऊंच नीच जारी रखे हुए है। दैनिक जरूरत की वस्तुओं दाल,अनाज, खाद्य तेल सामान्य ही हैं। पेट्रोल डीजल की दरों में न इजाफा हो रहा है और न कमी आ रही है। फिर भी मंदी छाई हुई है तो कारण क्या है। जहां तक रियल एस्टेट सेक्टर का सवाल है तो बीते बीस वर्षों में अंधाधुंध फ्लैटों के निर्माण ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है कि बात सेचुरेशन से ऊपर जा पहुंची है। क्या कोई बता सकता है कि वास्तव में देश में आज और आने वाले दस वर्षों में कितने मकानों की आवश्यकता होगी और उस मांग के सापेक्ष कितने फ्लैट बनाए जा चुके हैं। बगैर योजना केवल धन कमाने, काले धन को सुरक्षित करने के लिए आकाश की ओर बढ़े जा रहे रियल एस्टेट सेक्टर का कहीं तो अंत होना ही था। कृषि क्षेत्र को निस्संदेह बेहतर सुविधाओं और भरोसेमंद बाजार की जरूरत है जिसे अभी तक कोई सरकार उपलब्ध नहीं करा सकी है।
इन सबसे इतर आर्थिक मंदी के पीछे एक विचार यह है कि वर्तमान दौर में फिजूलखर्ची पर स्वत: कुछ रोक लगी है। अनावश्यक गाड़ी, कपड़े जैसी चीजों को खरीदने पर अब विचार किया जाने लगा है। बेशक पैसे की कमी से ऐसा हो रहा हो और यह परहेज स्थाई भी न हो तब भी इससे मांग और आपूर्ति का रिश्ता तो प्रभावित होता ही है।
सरकार की हर नीति को आंख मूंदकर समर्थन देना अंधभक्तों का काम है।असल भक्त सरकार की परीक्षा लेते हैं। यही नहीं असल भक्त सरकार से चमत्कार की उम्मीद करते हैं। केंद्र की मोदी सरकार ने अपने क्रियाकलापों से चमत्कार की आशा करने वाले भक्तों की संख्या में बेहद वृद्धि की है। आर्थिक मंदी को लेकर यही भक्त सर्वाधिक हमलावर हैं क्योंकि नोटबंदी, जीएसटी का नकारात्मक असर काफी हद तक समाप्त हो चुका है।चीन जहां ये दोनों कथित तुगलकी फैसले लागू नहीं किए गए थे वहां पिछले एक वर्ष में १९ लाख लोग नौकरी गंवा चुके हैं। तो भी आर्थिक मंदी है, सरकार ने कुछ कदम उठाए भी हैं। अच्छे और बुरे नतीजों के लिए भविष्य की प्रतीक्षा करनी होगी।(फ्यूचर लाइन टाईम्स हिंदी साप्ताहिक नौएडा)
0 टिप्पणियाँ