विज्ञापन प्रकाशित करना धंधे का विषय हो सकता है परंतु समाचारों में स्थान मिलना विशुद्ध बाजारवाद है !

लाल और गुलाबी सिंदूर की जगह काले और ड्रेस से मैच करते सिंदूर ने ले ली है। मॉम डे, फादर्स डे,हग डे, चॉकलेट डे जैसे फालतू और पश्चिम से आयातित त्यौहार बाजार की देन हैं।राजेश बैरागी-
भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का जितना महत्व है आजकल त्यौहारों में बाजार का भी उतना ही महत्व है। सदियों पहले के समृद्ध भारत में लोग त्यौहार का उत्सव मनाया करते थे। विदेशी आक्रमणों और लूटपाट के बावजूद त्यौहारों का महत्व तो कम नहीं हुआ परंतु मनाने के तौर-तरीकों में बदलाव आया तथा उत्सव फीके पड़ने लगे। देश गरीब हो गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कुछ नये प्रकार के त्यौहारों मसलन स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस का जन्म हुआ और ये त्यौहार राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाने लगे।१९९१ में तत्कालीन नरसिंहा राव सरकार द्वारा विश्व बाजार के लिए अपने द्वार खोल देने का बहुत बड़ा प्रभाव हमारे त्यौहारों पर भी पड़ा है।अब बाजार हमें न केवल त्यौहारों की सूचना देते हैं बल्कि त्यौहार मनाने के लिए उकसाते भी हैं। उदाहरण के लिए रक्षाबंधन के पर्व पर राखी के नये नये रूप और उनको लेकर नये नये उपमान गढ़े जाते हैं। पंचांग देखकर त्यौहार मनाने के दिन लद चुके हैं। बाजार की तैयारियां बताती हैं कि अमुक त्यौहार कब है। रेस्तराओं में व्रत विशेष थालियों ने घर में बनने वाली मिठाई,शमा के चावलों की खीर अधिकांश घरों से गायब हो चुकी है। पूजा के लिए पहने जाने वाले परिधान बाजार तय कर रहा है। लाल और गुलाबी सिंदूर की जगह काले और ड्रेस से मैच करते सिंदूर ने ले ली है। मॉम डे, फादर्स डे,हग डे, चॉकलेट डे जैसे फालतू और पश्चिम से आयातित त्यौहार बाजार की देन हैं। समाचार माध्यम इन त्यौहारों के उत्प्रेरक बन गए हैं। विज्ञापन प्रकाशित करना धंधे का विषय हो सकता है परंतु समाचारों में स्थान मिलना विशुद्ध बाजारवाद है। इससे रोजगार बढ़ा है इसमें संदेह नहीं परंतु फिजूलखर्ची से आम आदमी का जीवन कठिन होता गया है। दुष्परिणाम दिखाई दे रहे हैं, परिणाम और भयावह होंगे। (फ्यूचर लाईन टाइम्स हिंदी साप्ताहिक नौएडा)


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