स्वर्ण व दलित का भेदभाव एक षड्यंत्र !

एकलव्य का अंगूठा काटा गया था तो द्रोणाचार्य भी मात्र एक गाय के लिए तरसे थे, अपमानित भी किये गए थे।


 उस युग में एक ही अपराध के लिये ब्राह्मण को किसी दलित की अपेक्षा सोलह गुना दंड भी मिलता था। इस लिहाज से तो महाभारत काल ब्राह्मण विरोधी हो गया और मनु स्मृति भी ब्राह्मण विरोधी ही हुई फिर उसी युग में एक मछुआरन की संतान वेदव्यास ने महाभारत लिखी थी और त्रेतायुग में वाल्मीकि ने रामायण लिखी थी। जब एकलव्य की जात बताते हो तो हिडम्बा की जात भी बता दो और ये भी बता दो की उसी हिडम्बा के पोते खांटू श्याम को भगवान की तरह पूजा जाता है।


 ध्यान रहें... न्याय - अन्याय हर युग में होते हैं और होते रहेंगे, अहंकार भी टकराएंगे... कभी इनका तो कभी उनका, यह घटनायें दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं पर उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण होता है इनको जातिगत रंग देकर उस पर विभाजन की राजनीति करके राष्ट्र को कमजोर करना।
 यदि किसी ने भीम राव का अपमान किया तो किसी सवर्ण ने ही उनको पढाया भी। किसी एक घटना को अपने स्वार्थ के लिए बार -बार उछालना और बाकी घटनाओ पर मिट्टी डालना कौन सा चिंतन है, अतः इससे बच कर दलित-सवर्ण में षड्यंत्रकारियों द्वारा आप्रकृतिक रुप उपजाए जा रहे भेदभाव को नष्ट करके राष्ट्र की महानता की रक्षा करो।


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