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कविता छोटी है,परंतु सारांश बड़ा है।

मनोज तोमर द्वारा रचित कविता


वाह रे जिंदगी


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दौलत की भूख ऐसी लगी की कमाने निकल गए 
ओर जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए 
बच्चो के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी 
ओर जब फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए  
वाह रे जिंदगी
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वाह रे जिंदगी
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जिंदगी की आधी उम्र तक पैसा कमाया
पैसा कमाने में इस शरीर को खराब किया 
बाकी आधी उम्र उसी पैसे को 
शरीर ठीक करने में लगाया  
ओर अंत मे क्या हुआ 
ना शरीर बचा ना ही पैसा 
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वाह रे जिंदगी


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वाह रे जिंदगी
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शमशान के बाहर लिखा था 
मंजिल तो तेरी ये ही थी 
बस जिंदगी बित गई आते आते 
क्या मिला तुझे इस दुनिया से  


अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते 
वाह  रे जिंदगी


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