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कल कभी नही आता-:सत्यम सिंह बघेल

कल, कल और फिर कल लेकिन वह कल कभी नही आता। हर कोई सोचता है मुझे कुछ करना है, कुछ बनना है, सफल होना है। लेकिन कुछ लोग ही अपने उद्देश्य को पूरा कर पाते हैं और अधिकांश लोग असफल रह जाते हैं। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति का आलस्य व्यक्ति को वह नही करने देता, जो वे करना चाहते हैं, पाना चाहते हैं, बनना चाहता हैं। वे चाहते तो हैं कि मुझे कुछ करना है, कुछ करना है, कुछ करना है, लेकिन सिर्फ चाहते ही हैं, आलस्य उसको कर्म करने ही नही देता। मेहनत करने से रोकता है। काम को कल में टालने के लिए मजबूर कर देता है।


जिस काम को प्राथमिकता और प्रमुखता के साथ से किया जाना चाहिए, नही करते। 'कल,' 'कल' कहकर उसे टालते रहते हैं। उसके लिए हजारों वजह तैयार हो जाती हैं या समय की कमी हो जाती है। इस आलस्य ने काम को टालने की बना डाली है। यह आलस्य ही है जिसने टालने की पतनशील परम्परा को इतना मजबूत बना दिया है। शेक्सपियर ने ठीक ही कहा है, 'आज का अवसर घूमकर खो दो, कल भी वही बात होगी और फिर अधिक सुस्ती आएगी।' जब हमारा विचार अपूर्ण कामों की ओर जाता है, तब प्रमुख कामों के लिए यही सोच लेते हैं कि यह तो बहुत छोटे-छोटे काम हैं, जिस दिन इच्छा हुई, उन्हें पूरा कर लेंगे।


प्रेरक विचारों का क्या कभी भी पढ़ लेंगे, ध्यान का क्या कल से हो जाएगा, पढ़ाई का क्या कल से हो जाएगी, अच्छी बातों का अभ्यास कल से शुरू करेंगे, लक्ष्य निर्धारण का क्या कल से करेंगे। काम ही तो हैं हो जाएंगे कौन-सा एक दिन में पहाड़ टूटने लगा। अच्छे कामों के लिए इस तरह की सोच बना लेते हैं हम और टालते रहते हैं। एक बात जो अत्यंत कटु सत्य है कि इस प्रकार सोच-सोचकर हम सिर्फ अपने आपको धोखा दे रहें हैं।


काम को टालने की इस प्रवत्ति से हमारी कार्य-कुशलता पर प्रभाव पड़ता है। हमारे व्यक्तित्व पर और हमारे चरित्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नकारात्मकता बढ़ती है, निराशा भाव पैदा होते हैं, इच्छा शक्ति समाप्त होती है, आत्मविश्वास कमजोर होता है। कर्तव्यहीनता की भावना प्रबल होती है, हम गैरजिम्मेदार बनते जाते हैं। यही नहीं, अपने आलस्य को उचित ठहराने के लिए हमें अनेकों बहाने बनाने पड़ते हैं, हर दिन-हर पल झूठ का सहारा लेना पड़ता है।


कामों को टालने से कीमती समय की बर्बादी भी होती है। बेहतर हो कि पतन की इस प्रवृत्ति या परम्परा को जितना जल्दी हो सके अपने जीवन से दूर कर दें। इसके लिए स्वयं अनुशासन में रहकर आज के कार्य आज ही करने का अभ्यास करें और अपनी आदतों में परिवर्तन लाएं। संकल्प कर लें कि प्रत्येक कार्य निश्चित समय पर ही करेंगे। हो सकता है ऐसा करने में शुरुआत में थोड़ी दिक्कतें आएं किन्तु सतत अभ्यास से ही बदलाव आएगा और एक दिन हम स्वयं में पाएंगे कि कर्मपथ पर मंजिल की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।सत्यम सिंह बघेल


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