हिंदू मुस्लिम सिक्ख जैन बौद्ध ईसाई ये धर्म नहीं है ।

जिसे लोग धर्म समझते हैं वह धर्म नहीं है । हिंदू मुस्लिम सिक्ख जैन बौद्ध ईसाई ये धर्म नहीं है । लोग जिन्‍हें धर्म कहते हैं वे मृत चट्टानें हैं, ये सभी तथाकथित धर्म प्रेम आनंद व जीवन को नष्‍ट करने के काम में संलग्‍न रहते हैं । वे स्‍वर्ग नरक जन्नत आदि के बारे में मनुष्य की खोपड़ी में रंगीन कल्‍पनाऐं, मनमोहक भ्रम और भ्रांत धारणाओं का कूड़ा-करकट भरते रहते हैं । धर्म किसी संगठन वा संप्रदाय का नाम नहीं है । धर्म का अर्थ है- एक ऐसी जीवंत गुणवता जिसमे सत्‍य के साथ होने की क्षमता हो, प्रेम से भरे हृदय की धड़कनें हों और समग्र अस्‍तित्‍व के साथ मैत्रीपूर्ण लयबद्धता ह़ो । सच्‍ची धार्मिकता को पादरियों, पोपों, पंडितों, पुरोहितों, मौलवियों व किसी मंदिर मस्जिद चर्च आदि की आवश्यकता नहीं । धार्मिकता हमारे हृदय की खिलावट है, ध्यान द्वारा स्‍वयं की आत्‍मा के केंद्र बिंदु तक पहुंचने का नाम है । जिस क्षण हम अपने आस्‍तित्‍व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हैं उस क्षण सौंदर्य, आनंद व शांति का विस्‍फोट होता है।


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