मानव शरीर में मष्तिष्क की महत्ता सर्वोपरी है। मन ही इस जगत में सबसे शक्तिशाली और तीव्रगामी है। वही हमारी जीत हार ,उत्कर्ष,पतन, सुख,दुख रोगों,कष्टों,विसंगतियों विरोधाभाषों, गडबडियों, यश,अपयश,भेदभाव का कारण है। मानसिक विचार ही शरीर के माध्यम से कार्य रुप में परिणित होते है।
शरीर तो जड़ है,क्योंकि वह तो मनुष्य की म्रत्यु उपरांत भी बना रहता है,किंतु आत्मा के शरीर से संयुक्त न रहने या चेतना के अभाव से शरीर निष्क्रिय हो जाता है। आधुनिक वैज्ञानिक तो शरीर की कार्यप्रणाली को हीअभी कुछ हद तक ही जान सके है,लेकिन मन की सत्ता को अभी दो फीसदी भी नही समझ जा सका है। यह कुछ उदाहरणों से स्पष्ट हो जावेगा। अमेरिका में हुए एक प्रयोग के दौरान म्रत्युदंड के एक कैदी को साधारण सुई को तेज जहर वाली कह कर चुभाय जाने पर,कैदी की म्रत्यु का हो जाना मानसिक विचार के ही कारण म्रत्यु हो जाना सिद्ध करता है।जबकि इस घटना में शरीर को कोई हानि नही पहुंची थी। इसी प्रकार वजन कम करने के भावों से टहलने पर तेजी से वजन का घट जाना,,स्वयं को गुदगुदी करने पर हंसी का न आना आदि मन की शक्ति और सामर्थ्य को सिद्ध करते है। कोई भी मनुष्य लाख चाहकर भी कभी स्वयं को धोखा नही दे सकता है। शरीर के द्वारा जो कर्म सम्पादित होते है,वह पहले मन/मष्तिष्क में ही उत्पन्न होते है।
सनातन वेद ईश्वरीय वाणी है। वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान और मंत्र का अर्थ विचार है। वेदों में शुभ संकल्पों वाले मन की महत्ता बताई गई है। कोई दूसरा हमें बहुत पौष्टिक व स्वादिष्ट भोजन तो परोस सकता है,लेकिन उसे हमारे द्वारा न खाए जाने पर हमारी भूख शांत नही हो सकती है। इसी किसी दूसरे द्वारा हमें कहे गए अप्रिए वचनों से दुखी होना व प्रशंसा से खुश होना भी हमारी ही सोच पर निर्भर है। विज्ञान जगत में नित्य हो रही शोधों में कर्ण प्रिय संगीत का मानव मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव होना सिद्ध हो रहा है। सनातन संस्कृति की मान्यताओं में कार्य ,कारण सिद्धांत का विशेष महत्व है। धीमी गति से सामवेद की ऋचाओं के गायन से उच्च रक्तचाप में कमी आकर सामान्य हो जाना तथा यजुर्वेद व ऋग्वेद का पाठ तीव्रगति से करने पर निम्न रक्त चाप भी बढकर सामान्य हो जाता है। बिना दवा के भी कर्ण प्रिय संगीत सुनने मात्र से दर्द की तीव्रता में 50 फीसदी की कमी आ जाती है। पूर्व जन्म की अवधारणा सनातन संस्कृति की न्याय आधारित सिद्धिंतो को ही प्रकट करती है। गर्भावस्था म़ें अपनी म्रत मां द्वारा सुने जाने वाले संगीत की धुनों से नवजात शिशु को अपनी मां की स्म्रति दुखी करती है। वर्तमान जन्म के ऐसे कोई अनुभवों को न भोगे जाने के बावजूद, शिशु का यह व्यवहार गर्भावस्था मे मिले संस्कारों को प्रकट करता है आधुनिक युग के महायोगी तत्वदर्शी महर्षि दयानंद के वेद आधारित वचनों में छिपे विज्ञान एवं सूक्ष्म तात्विक विवेचना आधारित निष्कर्ष,अब वैज्ञानिक प्रयोगों पर प्रमाणित हो रहे है। सनातन संस्कृति के वेद आधारित 16 संस्कारों का विशेष महत्व है। गर्भाधान संस्कार की क्रिया में निर्धारित उपायों के अनुपालन से इच्छित संतान उत्पन्न की जा सकती है।संस्कारों को आचरण में आ जाने से ही भारत भूमि पर मर्यादा पुरोषोत्तम श्री राम ओर योगेश्वर श्री क्रष्ण जैसी दिव्य विभूतियों का जन्म एवं निर्माण सम्भव हुआ है। मन में उत्पन्न सकारात्मक विचारों का हमारे शरीर पर लाभदायक एवं नकारात्मक विचारों का इसी तरह हानि कारक प्रभाव पडता है।
ब्रह्मकुमारी आश्रम के एक उपदेशक मन की शक्तियों का मानव शरीर प्रभाव एवं पूर्वजन्म के कर्मफलों के भोगे जाने को लेकर ,अपने व्याख्यान में वर्तमान जन्म में किसी अबोध बच्चे को जन्म से शुगर की बीमारी हो जाने में शिशु के पिछले जन्म को कारण मान रहे है। जबकि न भोगे गए कर्मफलों की स्थिति में ही यह कथन सही सिद्ध होगा,लेकिन यदि उन कर्मो को यदि पूर्व जन्म में ही पूर्णतःभोग लिया गया है,तो वर्तमान जन्म में, शिशु को अपने जन्म से शुगर की बीमारी के होने का कोई न्याय,तर्क आधारित कारण नही शेष रहता है। किसी शिशु को यदि जन्म से ही शुगर का रोग मिलता है,तो इसका कारण सिर्फ पूर्व जन्म नही कहा जा सकता है,वह पूर्व जन्म में न भोगे गए कर्मो का फल अवश्य है।
आधुनिक युग के महायोगी तत्वदर्शी महर्षि दयानंद के वेद आधारित वचनों में छिपे विज्ञान एवं सूक्ष्म तात्विक विवेचना आधारित निष्कर्ष,अब वैज्ञानिक प्रयोगों पर प्रमाणित हो रहे है। सनातन संस्कृति के वेद आधारित 16 संस्कारों का विशेष महत्व है। गर्भाधान संस्कार की क्रिया में निर्धारित उपायों के अनुपालन से इच्छित संतान उत्पन्न की जा सकती है।संस्कारों को आचरण में आ जाने से ही भारत भूमि पर मर्यादा पुरोषोत्तम श्री राम ओर योगेश्वर श्री क्रष्ण जैसी दिव्य विभूतियों का जन्म एवं निर्माण सम्भव हुआ है। मन में उत्पन्न सकारात्मक विचारों का हमारे शरीर पर लाभदायक एवं नकारात्मक विचारों का हानि कारक प्रभाव पडता है।
ब्रह्मकुमारी आश्रम के एक उपदेशक मन की शक्तियों का मानव शरीर प्रभाव एवं पूर्वजन्म के कर्मफलों के भोगे जाने को लेकर ,अपने व्याख्यान में वर्तमान जन्म में किसी अबोध बच्चे को जन्म से शुगर की बीमारी हो जाने में शिशु के पिछले जन्म को कारण मान रहे है। जबकि न भोगे गए कर्मफलों की स्थिति में ही यह कथन सही सिद्ध होगा,लेकिन यदि उन कर्मो को यदि पूर्व जन्म में ही पूर्णतःभोग लिया गया है,तो वर्तमान जन्म में, शिशु को अपने जन्म से शुगर की बीमारी के होने का कोई न्याय,तर्क आधारित कारण नही शेष रहता है। किसी शिशु को यदि जन्म से ही शुगर का रोग मिलता है,तो इसका कारण सिर्फ पूर्व जन्म नही कहा जा सकता है,वह पूर्व जन्म में न भोगे गए कर्मो का फल अवश्य है
ध्वनियों या संगीत का एक अलग विज्ञान है। हिंदी भाषा के जो अक्षर संस्क्रत से लिए गए है की बांस के अनुक्रति (आकार) में निर्माण कर,उसके एक सिरे से फूक मारने पर ,दूसरे सिरे से,उस अक्षर की ध्वनियां ही उत्सर्जित होती है। शब्द को ब्रह्म भी कहा जाता है। ध्वनियों से विभिन्न आक्रतियों का निर्माण होते देखें।संतोष सिंह
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