हमारा वैभव शाली इतिहास और हमारी अकर्मण्यता

लार्ड मैकाले ने सर्वे में पाया कि भारत में हर गाँव में एक गुरुकुल है ,साक्षरता 97% से 100% है और कहा कि देश की सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत है कि यदि इस देश को गुलाम बनाना है तो जैसे नयी फसल उगाने से पहले खेत को पूरी तरह जोतना पड़ता है वैसा ही करना होगा।तो किया यह गया कि गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया गया, गुरुओं को गिरफ्तार किया गया बहुतों की तो हत्या कर दी गयी और कान्वेंट स्कूल खोले गये।क्या इतना अत्याचार पर्याप्त नहीं है स्मृति में रखने के लिए?क्या इतिहास से हम यह सीख भी नहीं ले सकते कि गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ थी।तो क्या उसी सांस्कृतिक विरासत को पुनः अपनाने के लिए प्रेरित नहीं होना चाहिए।पर दुखद है कि आज अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी हम सोये हुए हैं।आप कहते हैं कि अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है पर आप भलीभांति अपने मस्तिष्क में मजबूती से बिठा लीजिये कि आप शत प्रतिशत गलत हैं।कुल 204 देशों में से केवल 11 देशों में अंग्रेजी भाषा बोली जाती है।जैसा मैं सदैव कहता हूँ कि व्याकरण के मामले में यह एक दरिद्र भाषा है।यहां तक कि जीसस क्राइस्ट ने भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग नहीं किया।जिस देश के वासी अपनी भाषा को धारण करने में लज्जा महसूस करते हैं वह देश कदापि महान नहीं बन सकता, विश्व गुरु का सपना तो छोड़ ही दीजिये।हम विश्व गुरु थे, निश्चित ही थे पर क्या पुन:बन सकेंगे?वही देश महान बनेगा जो अपनी संस्कृति एवं भाषा को गर्व के साथ अपनायेगा।जापान, वियतनाम चाइना और कितने नाम गिनाऊं जिन्होंने अपनी संस्कृति को सहेजा है और इसी कारण वे शिखर पर पहुंचे हैं।संस्कृत भाषा को न सही हिंदी को तो पूर्ण रूप से अपनायें।


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