चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है :-विष्णुमित्र वेदार्थी

चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है।हमे अपने जिस मन की वृत्तियों का निरोध करना है वह चित्त मानो एक अगाध परिपूर्ण सागर का जल है। जिस प्रकार जल पृथिवी के सम्बन्ध से अर्थात् खाड़ी , झील आदि में पहुंच कर उसके आन्तरिक तदाकार परिणाम को प्राप्त होता है, इसी प्रकार हमारा चित्त भी आन्तरिक राग - द्वेष, काम- क्रोध, लोभ-मोह व भयादि रूप आकार से परिणत होता रहता है तथा जिस प्रकार जलरूपी तरंगें बाहरी ओर वायु आदि के वेग से उठती रहती हैं, इसी प्रकार हमारा चित्त भी नेत्र आदि इन्द्रियों द्वारा बाह्य विषयों से आकर्षित होकर उन विषयों के सदृश आकारों में परिणत होता रहता है। ये सब बाहर व भीतर के विकार चित्त की वृत्तियां हैं तथा ये नाना प्रकार की हैं और प्रतिक्षण उदय होती रहती हैं।ये असंख्य वृत्तियां प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा व स्मृति भेद से पांच प्रकार की हैं।देखो - जैसे यह जल वस्तु वायु व खाड़ी, झील आदि के अभाव में तरंग व आकार आदि परिणामों को त्यागकर अपने स्वभाव में अवस्थित हो जाता है वैसे ही हमारा चित्त जब बाह्य तथा आभ्यन्तर विषयाकार परिणाम को त्यागकर अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाता है, तब उसको चित्तवृत्तिनिरोध कहते हैैं।


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