आर्य कौन ?

आर्य का अर्थ : आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होता है। कौन श्रेष्ठ? वे लोग खुद को श्रेष्ठ मानते थे जो वैदिक धर्म और नीति-नियम अनुसार जीवन यापन करते थे। इसके विपरित जो भी व्यक्ति वेद विरूद्ध जीवन यापन करता था और ब्रह्म को छोड़कर अन्य शक्तियों को मानता था उसे अनार्य मान लिया जाता था। आर्य किसी जाति का नहीं बल्कि एक विशेष विचारधारा को मानने वाले का समूह था जिसमें श्‍वेत, पित, रक्त, श्याम और अश्‍वेत रंग के सभी लोग शामिल थे।


महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधव:। -अमरकोष 7।3
अर्थात : आर्य शब्द का प्रयोग महाकुल, कुलीन, सभ्य, सज्जन, साधु आदि के लिए पाया जाता है।



आर्य कोई जाति नहीं बल्कि यह उन लोगों का समूह था जो खुद को आर्य कहते थे और जिनसे जुड़े थे भिन्न-भिन्न जाति समूह के लोग। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है।... सायणाचार्य ने अपने ऋग्भाष्य में 'आर्य' का अर्थ विज्ञ, यज्ञ का अनुष्ठाता, विज्ञ स्तोता, विद्वान् आदरणीय अथवा सर्वत्र गंतव्य, उत्तमवर्ण, मनु, कर्मयुक्त और कर्मानुष्ठान से श्रेष्ठ आदि किया है।

आदरणीय के अर्थ में तो संस्कृत साहित्य में आर्य का बहुत प्रयोग हुआ है। पत्नी पति को आर्यपुत्र कहती थी। पितामह को आर्य (हिन्दी- आजा) और पितामही को आर्या (हिंदी- आजी, ऐया, अइया) कहने की प्रथा रही है। नैतिक रूप से प्रकृत आचरण करने वाले को आर्य कहा गया है।


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